Bihar Board 12th Sociology Subjective Question 2025: इसके बाहर नहीं आएगा प्रश्न उत्तर, @officialbseb.com

Bihar Board 12th Sociology Subjective Question 2025

Bihar Board 12th Sociology Subjective Question 2025: इसके बाहर नहीं आएगा प्रश्न उत्तर, @officialbseb.com

Bihar Board 12th Sociology Subjective Question 2025:

इस खण्ड के प्रश्न लघु उत्तरीय कोटि के हैं। किन्हीं 15 प्रश्नों के उत्तर 50 शब्दों में दें। प्रत्येक प्रश्न दो अंक का है 15×2= 30

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प्रश्न 1. मानवतावाद की अवधारणा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-पश्चिमीकरण के द्वारा जो नये विचार और सिद्धांत सामने आये उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण विचार था मानवतावाद । यह सभी मनुष्यों के कल्याण से संबंधित था । इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, आयु तथा लिंग का क्यों न हो। स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणाएँ मानवतावाद की मूल अवधारणा में सम्मिलित हैं। वास्तव में पश्चिमीकरण में मानवतावाद निहित है जिसने उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में एक नई चेतना को जन्म दिया और कई सुधारों को संभव बनाया । भारत में उस समय फैली हुई सती प्रथा, कन्या- शिशु हत्या तथा दास प्रथा पर रोक लगाने के लिए आवाज उठाई गई । राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती आदि समाज सुधारकों ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। राजा राममोहन राय के प्रयासों से सती प्रथा का अंत करने के लिए कानून बनाए गये ।

प्रश्न 2. भारत में औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के क्या प्रमुख उद्देश्य रहे हैं?
उत्तर भारत में औद्योगिक लाईसेंसिंग भीति के प्रमुख उद्देश्य (Main Objectives of Industrial Licensing) भारत में औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. विभिन्न योजनाओं के लक्ष्यों के अनुसार औद्योगिक निवेश तथा उत्पादन को विकसित एवं नियन्त्रित करना ।
2. छोटे और लघु उद्यमों को प्रोत्साहन देना तथा उन्हें संरक्षण प्रदान करना ।
3. औद्योगिक स्वामित्व के रूप में आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को रोकना ।
4. आर्थिक विकास के क्षेत्र में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना तथा समुचित संतुलित औद्योगिक विकास के लिए प्रेरित करना ।

प्रश्न 3. अनेकता में एकता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- भारतीय समाज का अवलोकन करने के पश्चात यहाँ अनेकता में एकता का पता चलता है। यहाँ जनसंख्या संबंधी भिन्नता, भाषा की भिन्नता, धार्मिक विविधता, सांस्कृतिक भिन्नताएँ तथा प्राकृतिक विविधता है। लेकिन इसके बावजूद विचारों तथा जातियों के बीच अनेकता में एकता उत्पन्न करने की भारतीयों की योग्यता ही मानव जाति के लिए भारत की सबसे बड़ी देन रही है। यहाँ सभी धर्म, और सम्प्रदाय एक दूसरे के पूरक हैं। होली, दीपावली, बुद्ध पूर्णिमा, ईद, क्रिसमस किसी एक धर्म के अनुयायियों से ही संबंधित नहीं है बल्कि सभी व्यक्ति इसमें भाग लेते है ।

प्रश्न 4. क्षेत्रवाद क्या है ?
उत्तर- क्षेत्रवाद से तात्पर्य एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की उस भावना से है जिसके अन्तर्गत वे अपनी एक विशेष भाषा, सामान्य संस्कृति, इतिहास और व्यवहार प्रतिमानों के आधार पर उस क्षेत्र से विशेष अपनत्व महसूस करते हैं तथा क्षेत्रीय आधार पर स्वयं को एक समूह के रूप में देखते हैं ।
व्यावहारिक दृष्टि से क्षेत्रवाद से आशय आज एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र के निवासियों की उस संकीर्ण मनोवृति से है जिसके अन्तर्गत वे एक क्षेत्र विशेष को केवल अपना और अपने लिए ही मानकर अपने स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं । अर्थात एक क्षेत्र विशेष के प्रति वहाँ के निवासियों की अंध भक्ति तथा पक्षपातपूर्ण मनोवृति ही क्षेत्रवाद है ।

प्रश्न 5. दलित आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- प्राचीन काल से ही भारत में दलितों की स्थिति काफी दयनीय या अमानवीय थी । वे उस सामाजिक व्यवस्था को पूर्व जन्म की नियति को
मानकर स्वीकार कर ली थी। वे एक ओर हीन भावना से ग्रसित थे और यह सोचना भी पाप समझते थे कि हम आप हिंदुओं जैसा एक सामान्य नागरिक होने का हक रखते हैं । उसी भावना को ध्वस्त कर उनमें एक नई चेतना प्रवाहित करने के लिए पहले दक्षिण भारत में रामास्वामी नायकर और अन्नादुरई के नेतृत्व में और बाद में महाराष्ट्र में भीमराव के नेतृत्व में आंदोलन चला जिसे दलित आंदोलन के रूप में जाना जाता है। इससे दलितों का मनोदशा बदला और वे जीवन के हर क्षेत्र में सम्मानपूर्ण हिस्सेदारी का दावा करने लगे ।

प्रश्न 6. लैंगिक विषमता का क्या अर्थ है ?
उत्तर- लैंगिक विषमता सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है। लिंग-भेद पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण के कारण नारीवाद से संबंधित कई दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए हैं जैसे अमूल परिवर्तनवादी, नारीवाद, समाजवादी, नारीवाद तथा उदारवादी नारीवाद । कुछ अन्य सिद्धान्तों के आधार पर भी लिंग-भेद का विश्लेषण किया जाता है । भारत में पितृसत्तात्मक पारिवारिक व्यवस्था उसका मुख्य कारण रहा है । लैंगिक विषमता के अन्तर्गत पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम महत्त्व दिया जाता है। वर्तमान में कन्या भ्रूण हत्या उसका मुख्य परिणाम है।

प्रश्न 7. पर्यावरण विनाश पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- मानव सभ्यता के विकास के साथ प्राकृतिक संसाधनों यथा मिट्टी, जीव, जन्तु, वन, खनिज जल इत्यादि का मनमाना उपयोग किया जिससे प्रकृति का उपयोग आज शोषण के रूप में परिवर्तित हो गया है। इसके परिणामस्वरूप एक ओर या तो हमारे प्राकृतिक संसाधन विलुप्त हो रहे हैं या प्रकृति का स्वभाविक संतुलन बिगड़ता जा रहा है। यह दोनों ही स्थिति मानव सभ्यता और मानव जाति के अस्तित्व के लिए अत्यन्त ही घातक है औद्योगिकरण के फलस्वरूप वायुमण्डल में उत्सर्जित जैसे – CO2 आदि पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। पर्यावरण विनाश के कारण पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। मानव अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी है।

प्रश्न 8. एकाकी परिवार क्या है ?
उत्तर – यह परिवार का सबसे छोटा रूप है जिसमें केवल पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं । भारत में औद्योगीकरण तथा नगरीकरण में वृद्धि होने के साथ धीरे-धीरे ऐसे परिवारों की संख्या बढ़ती जाती है ।

प्रश्न 9. नातेदारी की रीतियों की व्याख्या करें ।
उत्तर- एक नातेदारी समूह से सम्बन्धित लोगों के व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिए अनेक ऐसे रीति-रिवाज विकसित किये जाते हैं जिनसे कुछ व्यक्तियों के बीच घनिष्ठता बढ़ सके तथा कुछ व्यक्तियों के बीच दूरी बनायी रखी जा सके । उदाहरण के लिए, बच्चों का अपने माता-पिता से श्रद्धा और सम्मान का सम्बन्ध होता है, जबकि जीजा-साली अथवा देवर-भाभी के बीच हँसी-मजाक के सम्बन्ध पाये जाते हैं। अनेक रीतियाँ ऐसी होती हैं जिनके द्वारा दमाद, और ससुर के बीच दूरी बनाए रखने की कोशिश की जाती है, जबकि कुछ रीतियों के द्वारा मामा और भान्जों के बीच घनिष्ठता पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है । व्यवहार के इन सभी ढंगों को हम नातेदारी की रीतियाँ कहते हैं।

प्रश्न 10. सीमान्तीकरण का गया अर्थ है ?
उत्तर- परिवर्तन की अनेक दूसरी प्रक्रियाओं के समान सीमान्तीकरण भी एक विशेष प्रक्रिया है । यह एक नकारात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा विभिन्न आधारों पर कोई विशेष समूह या समुदाय समाज से अलग-अलग होने लगता है ।
समाजशास्त्र में सीमान्तीकरण को एक नियोजित प्रक्रिया के रूप में नहीं देखा जाता । यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो अनेक दशाओं के प्रभाव से समाज में अपने आप धीरे-धीरे विकसित होती है। एक तरह से यह परिवर्तन और विकास के अकार्यात्मक पक्ष से सम्बन्धित है ।

प्रश्न 11. भारत में उपनिवेशवाद से आए किन्हीं दो परिवर्तनों का उल्लेख करें ।
उत्तर- उपनिवेशवाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में गहरे बदलाव आए जिससे उत्पादन, कृषि, व्यापार में एक अभूतपूर्व विघटन हुआ। इससे हस्तकरघा के काम की बिल्कुल ही समाप्ति हो गई। इसका कारण था कि उस वक्त के बाजारों में इंग्लैण्ड से सस्ते बने कपड़ों की भरमार लग गई थी । हालांकि भारत में उपनिवेश के दौर से पहले ही एक जटिल मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था थी। ज्यादातर इतिहासकार उपनिवेश काल को एक संधिकाल के रूप में देखते हैं । उपनिवेश काल के दौरान, भारत विश्व की पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से जुड़ गया। अंग्रेजी राज से पहले भारत से सिर्फ बने बनाए सामानों का निर्यात होता था, परन्तु उपनिवेशवाद के बाद भारत, कच्चे माल और कृषक उत्पादों का स्रोत और उत्पादित सामानों का उपभोक्ता बन गया । ये दोनों कार्य इंग्लैण्ड के उद्योगों को लाभ पहुँचाने के लिए किए गए। उसी समय नए समूहों का व्यापार और व्यवसाय में आना हुआ। ये से जमे हुए व्यापारिक समुदायों से मेल-जोल कर अपना व्यापार शुरू करते समूह पहले थे या कभी उन समुदायों को उनका व्यापार छोड़ने को मजबूर करते थे। भारत में अर्थव्यवस्था के विस्तार में कुछ व्यापारिक समुदायों को नए अवसर प्रदान किए गए। उपनिवेशवाद द्वारा प्रदान किए गए आर्थिक सुअवसरों का लाभ उठाने के लिए नए समुदायों का जन्म हुआ जिन्होंने स्वतन्त्रता के बाद भी आर्थिक शक्ति को बनाए रखा। इसका सफल उदाहरण है-माड़वाड़ी।

प्रश्न 12. ‘जाति’ शब्द का अर्थ समझाइए |
उत्तर- ‘जाति’ एक व्यापक शब्द है जिसका किसी भी चीज के प्रकार या वंश- श्रेणी को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें अचेतन वस्तुओं से लेकर पेड़-पौधे, पशु-पक्षी भी हो सकते हैं। पशु-पक्षियों व पेड़-पौधों में भी कई जातियाँ पाई जाती हैं। अतः इन्हें भी ‘जाति’ शब्द दिया जा सकता है। अर्थात् जिन वस्तुओं में विभिन्नताएँ पाई जाती हैं, उनमें ‘जाति’ शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। भारतीय भाषाओं में ‘जाति’ शब्द का प्रयोग जाति, संस्थान के संदर्भ में ही किया जाता है।

प्रश्न 13. प्राचीन ग्रंथों व ऐतिहासिक सूत्रों से जाति की अनुभाविक वास्तविकता के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर- प्राचीन ग्रंथों में जातियों के निर्धारित नियम हमेशा व्यवहार में नहीं थे । अधिकांश निर्धारित नियमों में प्रतिबंध शामिल थे। ऐतिहासिक सूत्रों से यह पता चलता है कि जाति एक बहुत असमान संस्था थी। कुछ जातियों को इन व्यवस्थाओं से लाभ प्राप्त हुआ तो कुछ को इन व्यवस्थाओं की वजह से अधीनता व अत्यधिक श्रम का जीवन व्यतीत करना पड़ा। जाति जन्म द्वारा कठोरता से निर्धारित की गई थी।

प्रश्न 14. जातियों के कठोर नियम बनाए जाने के क्या कारण हैं ?
उत्तर- जाति के अधिकांश धर्मग्रंथसम्मत नियमों की रूपरेखा जातियों को मिश्रित होने से बचाने के लिए बनाई गई है। प्रत्येक जाति का समाज में एक विशिष्ट स्थान के साथ-साथ एक श्रेणी-क्रम भी होता है। शादी, खान-पान, व्यवसाय जातियों के नियमों में शामिल होते हैं ।

प्रश्न 15. औपनिवेशिक काल में जाति व्यवस्था के लिए क्या प्रयत्न किए गए ?
उत्तर- एक सामाजिक संस्था के रूप में जाति के वर्तमान स्वरूप को औपनिवेशिक काल और साथ ही स्वतंत्र भारत में तीव्र गति से हुए परिवर्तनों द्वारा मजबूतों से आकार प्रदान किया गया। जातियों की व्यवस्था सुधारने के लिए कई प्रयत्न किए गए इन प्रयत्नों में सबसे प्रमुख इन जातियों के बारे में आँकड़े इकट्ठे करना व इन जातियों में सम्मिलित समुदाय के लोगों की जनगणनाएँ करवाना इत्यादि प्रमुख थे ।

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Bihar Board 12th Geography Chepter-1 Subjective Question 2025: इसके बाहर नहीं आएगा प्रश्न उत्तर, @officialbseb.com

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