Bihar Board 12th Nibandh Lekhan in Hindi 2025: हिंदी =किसी एक पर निबंध लिखें, @Officialbseb.com
Bihar Board 12th Nibandh Lekhan in Hindi 2025:
(क) वसंत ऋतु
1.मेरी प्रिय ऋतु है- वसंत ऋतु। यह सारी ऋतुओं में सुंदर, आकर्षक, रमणीय और मनोरम है। इसे (वसंत को) ऋतुराज कहा जाता है। इसके आगमन की प्रतीक्षा रहती है धरती को इसकी प्रतीक्षा में पूरी प्रकृति पलक पांवड़े बिछाए रहती है। वसंत प्रकृति का यौवन है। वसंत प्रकृतिरूपी सुंदरी का मनमोहक श्रृंगार करता है। इसके आते ही नवल मुग्धा प्रकृति नवीन वेश धारण कर इसका स्वागत करने लगती है। सूखी टहनियों में भी कोपले फूट पड़ती हैं। पेड़-पौधे अरुण- कोमल पत्तों से सज जाते है। अमराइयाँ सुगंधित मंजरियों से लद जाती हैं। मधूक (महुआ और आम्रमंजरियों की मीठी और मधुर गंध से सारा वातावरण सुगंधमय हो उठता है। कोयल पंचम स्वर में कूकने लगती है। पपीहे उस कूक में अपने कंठ की मिठास घोलने लगते हैं। फूल मकरंद कणों से लद जाते हैं। फूलों के रंगीन उल्लास और मधुमय संकेतों से रीझकर भीरे उन्हें अपने मधुर गीत सुनाने लगते हैं। तितलियाँ फूलों की रंगीन पंखुड़ियों पर थिरकने लगती हैं। मयूर झूम-झूमकर नाच उठते हैं।
जब वसंत आता है, तब प्रकृति और धरती का अंग-अंग उल्लास और आनंद से भर उठता है। गंधभार से वायु की गति मंथर हो जाती है। जड़-चेतन वसंत के मादक स्पर्श से निहाल हो उठते हैं। धरती हो या आकाश, वसंत के आने पर उनकी शोभा निखर उठती है। प्राणी वसंत की शोभा को मौन भाव से अपने भीतर उतारकर मुग्ध होते रहते हैं। इस पृथ्वी पर ऐसा कोई प्राणी नहीं होगा जिस पर वसंत के जादू का प्रभाव न हो।
वस्तुतः, वसंत माधुर्य और सौंदर्य की ऋतु है। यह आनंद देनेवाली ऋतु है। इसकी मधुरता तथा सुंदरता में हम अपनी उदासी तथा निराशा को भूल जाते हैं। हममें नई आशा का संचार होता है यह हमारे भीतर और बाहर नई सुंदरता से हममें नई चेतना तथा नई प्रेरणा भरती है।
(ख) हिन्दी हैं हम
हर वर्ष 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस मनाया जाता है। मातृभाषा होने के साथ-साथ देश की ज्यादातर आबादी की बोल-चाल की भाषा भी है। एक अनुमान के अनुसार देश करीब 65 करोड़ लोग हिन्दी भाषी है और विश्व भर मे हिन्दी जानने वालों की तादाद 5 करोड़ से अधिक है। यही कारण है कि हिन्दी का बाजार लगातार बढ़ता जा रहा है। आज इलेक्ट्रॉनिक चैनलों, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में हिन्दी नजर आता है।
ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के ऑकड़ों के अनुसार हिन्दी और पत्रिकाओं की प्रसार संख्या सर्वाधिक है। डिजीटलीकरण के युग में अनेक वेब पोर्टल भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। आज लगभग सभी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के डिजीटल संस्करण उपलब्ध है और पाठक देश-विदेश के किसी भी कोने में बैठकर अपनी पसंद के विषय का समाचार पढ़ सकता है।
इंटरनेट युग में हिन्दी का तेजी से विकास हुआ है और भारत के अलावा विश्व भर के 40 से अधिक देशों में 600 से अधिक विद्यालयों, महाविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई और सिखाई जाती है लेकिन यदि दक्षिण भारत की बात करें तो राजनीतिक कारणों से यहाँ हिन्दी का लगातार विरोध किया जाता रहा है जबकि वहाँ की जनता को वास्तविकता समझनी चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि हिन्दी का विरोध करके वो देश की लगभग 65 करोड़ आबादी से अपने आपको अलग-अलग कर रहे है। हिन्दी आज विश्व स्तरीय भाषा बनती जा रही है और यही कारण है कि हिन्दी के पक्ष में एक बड़ा वर्ग और बाजार खड़ा हुआ है। हिन्दी के प्रति लेखकों प्रकाशकों और पाठकों का झुकाव निरंतर बढ़ रहा है और यह हिन्दीभाषी वर्ग के लिए गर्व की बात हैं। हिन्दी सिर्फ भारत में ही नहीं बोली जाती विदेशों -गुयाना, सूरीनाम, त्रिनीनाद, फिजी, मॉरिशस, दक्षिण अफ्रीका और सिंगापुर में भी यह अधिकांश लोगों की बोलचाल का भाषा है। जर्मन के स्कूलों में तो हिन्दी पढ़ाने के लिए विदेश मंत्रालय ने जर्मन सरकार ने समझौता किया है। और वहाँ पर जर्मन हिन्दी रेडियो सेवा संचालित है।
(ग) पर्यावरण संरक्षण
शारीरिक पोषण, मानसिक विकास और जीवन के लिए भोजन, पानी और हवा की आवश्यकता होती है। इसलिए आवश्यक हो जाता है कि जल एवं वायु की स्वच्छता के महत्त्व को समझा जाए। आधुनिक और वैज्ञानिक उपलब्धियों के सोपानों को तीव्रता से तय करते जा रहे मानव के लिए पर्यावरण के प्रति सावधानी और संवेदनशीलता अनिवार्य हो उठी है। अगर पर्यावरण के प्रति मनुष्य के अन्दर अब भी संवेदना नहीं जगी तो वह दिन दूर नहीं, जब समग्र सृष्टि विनाश के गहर में जा गिरेगी।
पर्यावरण अन्य कुछ नहीं, हमारे आसपास का परिवेश है। वस्तुतः राजनीतिक और सामाजिक के साथ हो सांस्कृतिक पर्यावरण भी होते हैं और ये भी आज कम चिन्ताजनक स्थिति में नहीं हैं। पर्यावरण का यह संदर्भ आज सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए हो गया है कि इसके दुष्परिणाम सीधे जीवन-मृत्यु के बीच की दूरी की लगातार कम करते जा रहे हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और हवा इन पाँच तत्त्वों से सृजित इस शरीर के लिए इन तत्त्वों की शुद्धता का महत्त्व कभी कम नहीं होता। इनमें संतुलन आवश्यक होता है। पेड़-पौधे, नदी, पर्वत, झरने, जीव-जन्तु, कीड़े- मकोड़े आदि सब मिलकर पर्यावरण को संतुलित रखने में सहयोग करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों के चमत्कारों ने प्रकृति को चुनौती के रूप में देखना आरंभ किया और उसकी घोर अवहेलना एवं उपेक्षा की जाने लगी। पेड़ों का काटना, पशु-पक्षियों का मारा जाना, नदी-नालों में कचरे गिराना, बड़े-बड़े बाँधों के निर्माण आदि के अविवेकी प्रयोगों ने सचमुच पर्यावरण को खतरे में डाल दिया है। लोग ऐसा मानने लगे हैं कि पेड़ों का अधिक होना किसी देश के पिछड़ेपन का प्रमाण है। इनकी जगह मिलों की चिमनियाँ दिखाई पड़नी चाहिए। लेकिन, आज स्पष्ट हो चुका है कि पेड़ों को छोड़कर चिमनियों के सहारे मानवता अधिक दिनों तक नहीं टिक सकती। बाघ और सिंह जैसे हिंसक पशुओं के जीवन की भी महत्ता अब समझ में आने लगी है और उनके वध को भी दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। स्पष्ट हो चुका है कि बड़े-बड़े बांधों से लाभ तो है, पर उनके प्रभाव से होने वाली हानियों की मात्रा भी अकल्पनीय है।
(घ) शिक्षित बेरोजगारी की समस्या
इसका कुछ-कुछ अंदाजा देश के विभिन्न नियोजनालयों में निबंधित बेरोजगारों की संख्या से लगाया जा सकता है। यदि किसी कार्यालय में पाँच-दस पद रिक्त होते हैं तो उनके लिए हजारों-हजार उम्मीदवार अपने-अपने भाग्य की आजमाइश करते है।
प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा किए गए, पर प्रतिवर्ष काम की तलाश करनेवाले लोगों की संख्या में वृद्धि होने के कारण रोजगार के ये अवसर कम पड़ते गए। यही कारण है कि भारत में आज बेकारी की समस्या सबसे दुस्तर समस्या बन गई है। बेकारी की समस्या ने पढ़े-लिखे युवकों को गलत रास्ते पर धकेला है। मेरी दृष्टि में राजनीतिक अपराधीकरण में बेरोजगारी का बहुत बड़ा हाथ है। अपहरण, जालसाजी, चोरी-डकैती तथा घूसखोरी जैसी कुप्रवृत्तियों को बेरोजगारी से जोड़ा जा सकता है।
बेरोजगारी मुख्यतः दो प्रकार की होती है—पूर्ण बेरोजगारी तथा अर्द्ध बेरोजगारी किसान और गाँव के मजदूर अर्द्धबेरोजगार होते हैं बेरोजगारी के मुख्य कारण हैं— औद्योगिकीकरण (उद्योगीकरण) की धीमी गति, देहातों में घटते रोजगार, गैरकृषि क्षेत्र में कम रोजगार, उत्पादन में पुराने तरीकों के स्थान पर नई तकनीकों का अपनाया जाना, जनसंख्या में लगातार वृद्धि एवं प्राकृतिक प्रकोप भारत जैसे विशाल जनसंख्यावाले देश में बेरोजगारी दूर करने के लिए लघु एवं कुटीर उद्योग-धंधों के विकास की ही आवश्यकता है। केंद्रीय सरकार की आर्थिक नीति के कारण विदेशी पूँजी निवेश बढ़ा है। विदेशी कंपनियों भारत में उद्योग-धंधा स्थापित कर रही है। देखिए, इससे इस समस्या के निदान में कितनी मदद मिलती है। अर्थशास्त्रियों ने आँकड़ों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग साठ लाख लोग बेरोजगार होते जा रहे हैं। रोजगार का अर्थ नौकरी ही नहीं है। हमें रोजगार के लिए कल्पनाशील और उद्यमी होना होगा। बैंकों से हमें ऋण की सुविधा प्राप्त है। ऋण लेकर हम कोई अपना रोजगार प्रारंभ कर सकते हैं। यदि हम शिक्षित होकर कोई रोजगार करते हैं तो समाज हमें प्रतिष्ठा ही देगा, अनादर नहीं। शिक्षा को व्यावहारिकता के साथ जोड़कर हम इस समस्या के निदान की दिशा में अच्छी शुरुआत कर सकते हैं।
लघु उद्योग को प्रोत्साहन, शिक्षा को व्यवसाय से जोड़ने तथा अधिकाधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने से इस समस्या का निदान हो सकता है। 2008 में आए आर्थिक मंदी के दौर ने विश्व के सारे देशों को हिलाकर रख दिया है। नौकरियों में छंटनी के चलते बेरोजगारी की विकट समस्या पैदा हो गई है। आर्थिक मंदी ने तेल पर तैरनेवाले सम्पन्न खाड़ी देशों का तिलिस्म तोड़ दिया है। वहाँ काम करनेवाले कुछ भारतीय नौकरी गँवाकर देश लौटे हैं तो कुछ स्वरोजगार चौपट होने से। अमेरिका जैसा संपन्न देश आर्थिक मंदी की चपेट में है। भारत में भी इसका असर होने लगा है। यह अत्यंत चिंता का विषय है। अर्थशास्त्रियों को इसकी कोई काट ढूंढ़नी होगी।
(ङ) ग्राम पंचायत
ग्राम पंचायत हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले ऐसे पाँच लोगों का समूह जो लोगों द्वारा चुने जाते है और जिन्हें लोग पंच कहते हैं ये पंच लोग मिलकर ग्राम की पंचायत बनाते हैं और ग्राम के विकास और किसी भी तरह की ग्रामीण समस्या को हल करने की जिम्मेदारी इस ग्राम पंचायत की होती है। दरअसल गाँव के वयस्क लोग मिलकर ग्राम सभा रखते हैं और इस ग्राम सभा के लोग ही नई पंचों का चयन करते हैं और फिर पंचायत बन जाती है ग्राम के विकास के लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है इन ग्राम पंचायतों में एक मुखिया भी होता है और इसका चुनाव 5 वर्ष में होता है। आज हम देखें तो स्वतंत्रता के बाद बहुत सारे बदलाव देखने को मिले हैं। स्वतंत्रता के बाद इस तरह की पंचायत वाली प्रणाली से हर किसी को लाभ भी मिला है क्योंकि किसी भी तरह की ग्रामीण समस्या का हल पंच मिलकर करते हैं। गाँव से अगर पानी की समस्या है तो पानी की समस्या को निपटाने के कार्य भी ग्राम पंचायत करती है। बहते हुए पानी को किस मार्ग से निकाला जाए पानी का निकासी द्वारा बनाने की योजना भी ग्राम पंचायत बनाती है और उसका प्रबंध भी करती है तालाब, नालो आदि का निर्माण भी ग्राम पंचायत करवाती है।
गाँव की सड़के और उनका नया निर्माण भी ग्राम पंचायतों के हाथ में होता है आजकल हम देखें तो विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ हमारे समाज में फैल रही हैं इस वजह से स्वच्छता रखना बहुत जरूरी है और स्वच्छता रखने का कार्य भी ग्राम पंचायतों का भी होता है। ग्राम पंचायतें अपने गाँव को स्वच्छ रखने के लिए बहुत कुछ प्रयास करती हैं यह ग्राम पंचायतें बच्चों और नौजवानों के लिए खेल के मैदानों का प्रबंध करती है और यहाँ तक कि समय-समय पर वृक्षारोपण भी ग्राम पंचायत करवाती है क्योंकि पेड़ पौधे हमारे देश के वातावरण के लिए हमारे लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते है। ग्राम पंचायत पेड़ लगाने का कार्य करवाती है यहाँ तक कि किसी तरह के विवाद को निपटाने के लिए भी ग्राम पंचायत मदद करती है।
आजकल देखा जाता है कि बहुत से ऐसे गाँव हैं जहाँ के शहरी इलाका बहुत दूर है यह कह सकते हैं कि पुलिस स्टेशन बहुत दूर होता है जिस वजह से अगर ग्रामीणों में कोई भी घटना घटित होती है तो बहुत देर में समस्या का निपटारा होता है जिस वजह से गाँव की पंचायत इसमें महत्वपूर्ण निभाती है किसी भी तरह के झगड़े चोरी, डकैती करने वाले लोगों के खिलाफ एक्शन लेती है और उसे सजा भी देती है जिससे वह व्यक्ति दोबारा इस तरह के कर्म न करें।
(च) मेरे प्रिय कवि
हिंदी साहित्य के इतिहास में महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का व्यक्तित्व निराला है. ये मानवतावाद के श्रेष्ठ कवि है। इनकी गणना ‘छायावाद’ के प्रवर्तक कवियों में की जाती है।
इनकी रचना का आधार प्रगतिशीलता और अध्यात्म है। ये निर्बलों, असहायों, शोषितों, उपेक्षितों के पक्षधर कवि हैं। समाज के शोषित वर्ग के साथ इनकी हार्दिक सहानुभूति है। ‘वह तोड़ती पत्थर’, ‘भिक्षुक’, ‘कुकुरमुत्ता’ आदि रचनाओं में पूँजीवादी सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध इनका क्षोभ व्यक्त हुआ है। अध्यात्म इनकी रचनाओं का दूसरा महत्त्वपूर्ण आधार है। ‘गीतिका’, ‘अनामिका’ और ‘परिमल’ की अनेक रचनाओं में इनकी आध्यात्मिक अनुभूति की विशद और हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति हुई है। इनकी सौंदर्य चेतना आध्यात्मिकता के रंग में रंगी हुई है। है। इनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं— अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नए पत्ते। इनकी कथात्मक कृतियों में चतुरी चमार (कहानी-संग्रह), सुकुल की बीवी (कहानी-संग्रह), अप्सरा, अलका, निरुपमा, प्रभावती तथा काले कारनामे (सभी उपन्यास) आते हैं। ”निराला’ में कबीर की अक्खड़ता, तुलसी की विराटता सूर की भावुकता, जायसी की लोक स्पर्शिता एवं रवींद्रनाथ ठाकुर की मनस्विता का रचनात्मक समन्वय है। ‘निराला’ जितने लोकं के कवि है, उतने ही लोकातीत के भी पर, इनकी लोकातीत अभिव्यक्ति कभी लोक के रंग और उसकी सुवास का विस्मरण नहीं करती।
(i) आपका प्रिय रचनाकार
बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ छायावाद के अग्रणी कवि है। यही मेरे प्रिय कवि एवं साहित्यकार है। ओज, पौरुष और विद्रोह के महाकवि हैं ‘निराला’।इनका जन्म बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर गाँव में 1897 में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी था। वह जिला उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। आजीविका के लिए वह बंगाल चले गए थे। ‘निराला’ की प्रारंभिक शिक्षा महिषादल में हुई। इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बंगला और अंगरेजी का अध्ययन किया। भाषा और साहित्य के अतिरिक्त इनकी रुचि संगीत और दर्शनशास्त्र में भी थी ‘गीतिका’ में इनकी संगीत रुचि का अच्छा प्रमाण मिलता है। ‘तुम और मैं’ कविता में इनकी दार्शनिक विचारधारा अभिव्यक्त हुई है। ‘निराला’ स्वामी रामकृष्ण परमहंस तथा विवेकानंद की दार्शनिक विचारधारा से काफी प्रभावित हुए।
‘निराला’ बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कविता के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, निबंध, आलोचना और संस्मरण भी लिखे। इनकी महत्त्वपूर्ण काव्य-रचनाएँ हैं— ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’, ‘तुलसीदास’, ‘अनामिका’ ‘कुकुरमुत्ता’, ‘बेला’, ‘अणिमा’, ‘नए पत्ते’, ‘अर्चना’, ‘अपरा’, ‘आराधना’, ‘गीतकुंज’ तथा ‘सांध्यकाकली’। ‘तुलसीदास’ खण्डकाव्य है। इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं- ‘अप्सरा’, ‘अलंका’, ‘प्रभावती’, ‘निरूपमा’, ‘चोटी की पकड़’, काले कारनामे’ और ‘चमेली’। ‘कुल्ली भाट’ और ‘बिल्लेसुर बकरिहा इनके प्रसिद्ध रेखाचित्र है। इन रेखाचित्रों में जीवन का यथार्थ खुलकर सामने आया है। ‘चतुरी चमार’ और ‘सुकुल की बीबी’ इनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। ‘प्रबंध-पदा’, ‘प्रबंध प्रतिमा’ एवं ‘कविताकानन’ इनके आलोचनात्मक निबंधों के संग्रह है।
श्रृंगार, प्रेम, रहस्यवाद, राष्ट्रप्रेम और प्रकृति-वर्णन के अतिरिक्त शोषण के विरुद्ध विद्रोह और मानव के प्रति सहानुभूति का स्वर भी इनके काव्य में पाया जाता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने निराला के विषय में लिखा है- “सर्वत्र व्यक्तित्व की अत्यंत पुरुष अभिव्यक्ति ही निराला की कविताओं का प्रधान आकर्षण है। ‘तुलसीदास’, ‘राम की शक्तिपूजा’ और ‘सरोजस्मृति’ जैसी कविताएँ उनकी सर्वोत्तम कृतियाँ हैं। इनमें भाषा का अद्भुत प्रवाह पाठक को निरंतर व्यस्त बनाए रखता है।”
” निराला-सा निराला कवि आज तक हिंदी साहित्य में कोई दूसरा नहीं हुआ। ये किसी विचारधारा की संकीर्णता से मुक्त अपनी मुक्त आत्मा के आमंत्रण पर शब्द-विधान करते हैं, इसीलिए तो इनकी कारयित्री कल्पना भावयित्री कल्पना के सामंजस्य में भाव प्रेषण करती है, जिसमें रस का तरंगपूर्ण औदात्त्य है।” –
(ii) पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता निबंध के लिए हिन्दी (100 अंक) प्रश्न संख्या 1 (ग) देखें।
(iii) कंप्यूटर आधुनिक यंत्र-पुरुष ‘कंप्यूटर’ शब्द अँगरेजी भाषा का शब्द है जो ग्रीक भाषा के कंप्यूटर से बना है। ‘कंप्यूटर’ शब्द का हिंदी अर्थ है- परिकलक या अभिकलित्र। कंप्यूटर तीव्रगति का इलेक्ट्रॉनिक यंत्र है, जो गणितीय एवं तार्किक क्रियाकलाप का सफलता के साथ संपादन करता है।
भारत में कंप्यूटर का महत्त्व दिनानुदिन बढ़ता जा रहा है। यह उच्चवर्ग तथा मध्य वर्ग के जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है। मध्यवर्गीय शिक्षित परिवार में कंप्यूटर एक अनिवार्य सूचना उपकरण के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। इंटरनेट से संबद्ध होकर कंप्यूटर हमारे लिए और अधिक उपयोगी हो गया है। जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में इसका उपयोग बड़ी सफलता के साथ किया जा रहा है। चाहे बैंक हो या प्रयोगशाला, बड़ी कंपनी हो या कोई बड़ी दुकान, चित्रकार हो या शिल्पकार, डिजाइन इंजीनियर हो या कोई साहित्यकार सभी कंप्यूटर के उपयोग से अपने-अपने कार्यों में तीव्रता, शुद्धता और पूर्णता की वृद्धि करने में संलग्न है। कंप्यूटर में प्राप्त इंटरनेट की सुविधा तो और आश्चर्यजनक है। इसने आज पूरे संसार को एक सूत्र में बाँध रखा है।
दैनिक जीवन में कंप्यूटर परम सहयोगी का काम कर रहा है। इसके माध्यम से घर बैठे बिजली का बिल या निगम में गृहकर जमा किया जा सकता है। इससे टिकट बुकिंग (रेल, बस तथा हवाई जहाज की टिकट बुकिंग), होटल बुकिंग, ऑन लाइन शॉपिंग बड़ी सहजता से संभव है। किसी भी विषय की जानकारी महज एक क्लिक से प्राप्त की जा सकती है। ज्ञान के विस्तार के लिए, दूरस्थ लोगों से संपर्क साधने के लिए, फोटो भेजने या मँगवाने के लिए, स्कूल-कॉलेजो में नामांकन की जानकारी के लिए, अस्पताल या हर प्रकार की जानकारी के लिए इंटरनेट-संबद्ध कंप्यूटर हमारी मदद को तत्पर है। आजकल लगभग सभी कार्यालयों में कंप्यूटर का उपयोग हो रहा है। इससे कार्यालय के सारे कार्य त्वरित गति एवं शुद्धता के साथ संपन्न हो जाते हैं। हमें इंटरनेट-संबद्ध कंप्यूटर के दुरुपयोग से बचना चाहिए। वाइरस के माध्यम से दूसरों को हानि पहुँचाना, अश्लील तस्वीरें भेजना, गंदे-गंदे ई-मेल भेजना आदि आजकल आम हो गया है। हमें इन अपराधों से बचना चाहिए।
(iv) दहेज प्रथा एक अभिशाप
दहेज भारतीय समाज के लिए अभिशाप है। यह कुप्रथा घुन की तरह समाज को खोखला करती चली जा रही है। इसने नारी जीवन तथा सामाजिक व्यवस्थ को तहस-नहस करके रख दिया है।
दहेज रूपी समस्या आज आम आदमी की नींद खराब कर दी है। लोग अपनी बच्ची की शादी के लिए परेशान रहते हैं, आज इस समस्या का मूल कारण मानव-मन में छुपा हुआ लोभ है। ऐसे लोभी व्यक्ति, लड़की वालों से मोटी-मोटी रकम माँगते हैं। कार, मोटरसाइकिल, टी.वी., फ्रीज, कंप्यूटर, लैपटॉप आदि के अलावा अन्य कीमती वस्तुएं मांगी जाती है। आज इन वस्तुओं के नहीं दे पाने की वजह से कई शादियाँ टूट जाया करती हैं तथा बहुएँ प्रताड़ित भी होती है। दहेज प्रथा के दुष्परिणाम विभिन्न है। या तो कन्या के पिता को लाखों का दहेज देने के लिए घूस, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, काला बाजार आदि का सहारा लेना पड़ता है। या उनकी कन्याएँ अयोग्य वरों के मत्थे मढ़ दी जाती हैं।
दहेज की समस्या का निवारण तभी हो सकती है जब हम कृत संकल्प हो कि हम दहेज के तौर पर अधिक सामान या रुपये की माँग नहीं करेंगे, हम वही वस्तुएँ लेंगे जो लड़कीवाले स्वेच्छा से दे सकेंगे। इसके लिए जन-जागृति की आवश्यकता है। हलाकि दहेज को रोकने के लिए समाज में संस्थाएँ बनी हैं, युवकों से प्रतिज्ञा पत्रों पर हस्ताक्षर भी लिए गए हैं, कानून भी बने हैं, परन्तु समस्या ज्यों-की-त्यों है। सरकार ने दहेज निषेध ‘अधिनियम के अंतर्गत दहेज के दोषी को कड़ा दंड देने का विधान रखा है। परन्तु वास्तव में आवश्यकता है- जन-जागृति की। जब तक युवक दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियाँ दहेज लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगी तबतक यह कोढ़ चलता रहेगा। दहेज अपनी शक्ति के अनुसार दिया जाना चाहिए, धाक जमाने के लिए नहीं। दहेज दिया जाना ठीक है, माँगा जाना ठीक नहीं। दहेज को बुराई वहाँ कहा जाता है, जहाँ माँग होती है। दहेज प्रेम का उपहार है, जबरदस्ती खींच ली जाने वाली संपत्ति नहीं।