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Bihar Board 12th History Subjective Question 2025
Q.1. हड़प्पा सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी, कैसे ?
Ans. हड़प्पा सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी। इसके अन्तर्गत अनेक नगरों के अवशेष मिले है जिसमें हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल आदि प्रमुख हैं।
* मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा नियोजित शहरी केन्द्र था। यह सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है यद्यपि इसकी खोज हड़प्पा से बाद ही हुई।
* मोहनजोदड़ो शहर को नियोजको ने दो भागों में विभाजित किया है। एक भाग छोटा है लेकिन वह हिस्सा अधिक ऊँचाई पर बनाया गया है और दूसरा भाग अधिक बड़ा है। लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमश: दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है।
*’मोहनजोदड़ों का दूसरा भाग अर्थात् निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। इसके अलावा अनेक मकानों को ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया था जो नींव का काम करते थे।
* मोहनजोदड़ों शहर का सम्पूर्ण भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। ऐसा इसलिए जान पड़ता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन ।
*’मोहनजोदड़ों का निचला शहर आवासीय भवनी (गृह स्थापत्य) के सबसे अच्छे उदाहरण पेश करता है। इनमें से अनेक एक आँगन पर केन्द्रित थे जिसके चारों तरफ कमरे बने थे। आँगन में एकांतता (Privacy) का ध्यान रखा गया था। प्रत्येक घर में ईटों का फर्श बना होता था। प्रत्येक घर का एक माल गोदाम तथा विशाल स्नानागार भी बनाया गया था। इस प्रकार, यह कहा जाता है कि हड़प्पा सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी।
Q.2. हड़प्पा सभ्यता के पतन के मुख्य कारण क्या थे? [2010, 2012, 2018)
Ans. हड़प्पा सभ्यता कैसे समाप्त हुई, इसको लेकर विद्वानों में मतभेद है। फिर भी इसके पतन के निम्नलिखित कारण दिये जाते हैं-
* सिन्धु क्षेत्र में आगे चलकर वर्षा कम हो गयी। फलस्वरूप कृषि और पशुपालन कठिनाई होने लगी में कठिनाई होने लगी
* कुछ विद्वानों के अनुसार इसके पास का रेगिस्तान बढ़ता गया। फलस्वरूप मिट्टी में लवणता बढ़ गयी और उर्वरता समाप्त हो गयी।
* इसके कारण सिधु सभ्यता का पतन हो गया।
* कुछ लोगों के अनुसार यहाँ भूकंप आने से बस्तियाँ समाप्त हो गयी।
* कुछ दूसरे लोगों का कहना था कि यहाँ भीषण बाढ़ आ गयी और पानी जमा हो गया। इसके कारण लोग दूसरे स्थान पर चले गये।
* एक विचार यह भी माना जाता है कि सिधु नदी की धारा बदल गयी और सभ्यता का क्षेत्र नदी से दूर हो गया।
Q.3. सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
Ans. सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस सभ्यता की खोज-1921 ईo में सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थान से हुई थी। हड़प्पा संस्कृति का विस्तार पंजाब, सिंध, राजस्थान, गुजरात तथा बलुचिस्तान के हिस्सों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती भाग तक था।
Q.4. हडप्पा संस्कृति के बारे में जानकारी के क्या स्रोत है ? VVI
Ans. हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानकारी कराने वाले अनेक स्रोत उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो जैसे विभिन्न नगरों की खुदाई से प्राप्त विभिन्न भवनों, गलियों, बाजारों, स्नानागारों आदि के अवशेष हडप्पा संस्कृति पर प्रकाश डालते है। इन अवशेषों से हडया संस्कृति के नगर निर्माण एवं नागरिक प्रबन्ध के विषय में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।
दूसरे कला के विभिन्न नमूना से जैसे मिट्टी के खिलौना, धातुओं की मूर्तियों (विशेषकर नाचती हुई लड़की की तांबे की प्रतिमा) आदि से हड़प्पा के लोगों की कला एवं कारीगरी पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
मोहरों (Seals) से भी हड़प्पा संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर काफी जानकारी प्राप्त होती है। इससे हड़प्पा संस्कृति से संबंधित लोगों के धर्म, पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों तथा उस समय की लिपि से यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पाई लोग पढ़े-लिखे थे। इस लिपि के पढ़े जाने के बाद उनके संबंध में कई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
Q.5. हड़प्पा सभ्यता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Ans. हडप्पा सभ्यता को एक नगरीय सभ्यता कहा गया है। नगरीय सभ्यता का ही प्रमाण है कि इस संस्कृति के निर्माताओं ने विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की थी। विज्ञान एवं तकनीकी प्रगति को हम निम्न बिन्दुओं के तहत देख सकते है-
1. लिपि : सिन्धु सभ्यता के निवासियों ने एक भाव चित्रात्मक लिपि का आविष्कार किया था। मगर यह लिपि पढ़ने में अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हो पायी है। कई ऐसी मुद्राएँ मिली है. जिन पर यह चित्र लिपि अंकित है।
2. धातुकर्म : सिन्धु सभ्यता के एक प्रमुख स्थल लोथल (काठियावाड़) से ताँबे एवं काँसे की कुछ वस्तुएं मिली है। मोहनजोदड़ो से भी एक 10.5 सेमी.
ऊँची काँसे की एक नर्तकी बाला की मूर्ति मिली है। इससे पता चलता है कि कच्ची धातु से शुद्ध ताँबा निकालने की तकनीकी से परिचित थे। ताँबा, चूँकि 1083°C पर पिघलता है, अतः निश्चित रूप से वे इतना ताप पैदा करने की तकनीकी से भी परिचित रहे होगे। संभवत: सिन्धुवासी राजस्थान स्थित ताँबे की (खेतड़ी) खानों से कच्ची धातु प्राप्त करते थे।
3. वाहन : मोहनजोदड़ो से बैलगाड़ी का खिलौना मिला है जो इस बात का द्योतक है कि वे लोग आवागमन अथवा मालवाहक के उपयोग हेतु वाहन निर्माण तकनीकी से परिचित थे।
4. गोदी एवं नौका : लोथल से ईटों से निर्मित 128 मी. लम्बी एवं 37 मीटर चौड़ी एक आयताकार गोदी (डाकयार्ड) मिली है। इससे पता चलता है कि वे नौका एवं गोदी निर्माण की तकनीकी से परिचित थे। मोहनजोदड़ो के एक बर्तन पर नाव का चित्र बना हुआ है। इन नौकाओं द्वारा विदेशों से व्यापार होता होगा। मेसोपोटामिया के एक अभिलेख में मेलुआ (सिन्ध क्षेत्र) के साथ व्यापार संबंधों की चर्चा है।
5. माप-तौल की तकनीकी का ज्ञान हड़प्पा सभ्यता के लोग माप-तौल की तकनीकी से परिचित थे। सिन्धु सभ्यता में करीब 150 बाँट मिले है। सबसे बड़ा बॉट 1375 ग्राम का एवं सबसे छोटा बाँट 0.87 ग्राम का है। ये बॉट 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64 के अनुपात में है। यहाँ 16 के अनुपात का विशेष महत्व रहा है।
Q.6. सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा बनाये गये मिट्टी के बर्तनों की क्या विशेषताएं थी ?
Ans. (1) सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले बर्तन चाक पर बने होते थे। जो इस बात को स्पष्ट करती है कि यह संस्कृति पूरी तरह विकसित थी।
(2) रूप और आकार की दृष्टि से इन बर्तनों की विविधता तथा सुन्दरता आश्चर्यजनक है।
(3) पतली गर्दन वाले बड़े आकार के घड़े तथा लाल रंग के बर्तनों पर काले रंग की चित्रकारी आदि हडप्पा के बर्तनों की विशेषताएं है।
(4) इन बर्तना पर अनेक प्रकार के वृक्षा त्रिभुजा, वृत्तों व बेला आदि का प्रयोग करके अनेक प्रकार के खिलौने तथा नमुने बनाये गये है।
Q.7. सिन्धु घाटी सभ्यता की जल निकास प्रणाली का वर्णन करें।
Ans. मोहनजोदड़ो के नगर नियोजन की एक और प्रमुख विशेषता यहाँ की प्रभावशाली जल निकास प्रणाली थी। यहाँ के अधिकांश भवनों में निजी कुएँ व स्नानागार होते थे। भवन के कमरों, रसोई, स्नानागार, शौचालय आदि सभी का पानी भवन की छोटी-छोटी नालियों से निकल कर गली की नाली में आता था। गली की नाली को मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी पक्की नालियों से जोड़ा गया था। मुख्य सड़क के दोनों ओर बनी नालियों को पत्थरों अथवा शिलाओं द्वारा ढंक दिया जाता था। नालियों की सफाई एवं कूड़ा-करकट को निकालने के लिए बीच-बीच में नर मौखे (मेन होल) भी बनाये गये थे। नालियों की इस प्रकार की अद्भुत विशेषता किसी अन्य समकालीन नगर में देखने को नहीं मिलती।
Q.8. मोहनजोदड़ो के सार्वजनिक स्नानागार के विषय में लिखिए।
Ans. मोहनजोदड़ो में बना सार्वजनिक स्नानागार अपना विशेष महत्व रखता है। यह सिन्धु घाटी के लोगों की कला का अद्वितीय नमूना है। ऐसा अनुमान है कि यह स्नानागार (तालाब) धार्मिक अवसरों पर आम जनता के नहाने के प्रयोग में लाया जाता था। यह तालाब इतना मजबूत है बना हुआ है कि हजारों वर्षों के बाद भी यह वैसे का वैसा ही बना हुआ है। इसकी दीवार काफी चौड़ी बनी हुई हैं जो पक्की ईटो और विशेष प्रकार के सीमेंट से बनी हुई है ताकि पानी अपने आप बाहर न निकल सके। तालाब (स्नानाघर) में नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हुई है। पानी निकलने के लिए नालियों का भी प्रबंध है।
Q.9. सिंधु घाटी (हड़प्पा सभ्यता) की नगर योजना का वर्णन करें। [2014, 2017, 2018 ]
Ans. सिंधु घाटी के लोग नगरों में रहने वाले थे। वे नगर स्थापना में बड़े कुशल थे। उन्होंने हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन, लोथल, रोपड़ जैसे अनेक नगरों का निर्माण किया। उनकी नगर व्यवस्था के संबंध में निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं-
1. हड़प्पा संस्कृति के नगर एक विशेष योजना के अनुसार बनाये गये थे। इन लोगों ने बिल्कुल सीधी (90° के कोण पर काटती हुई सड़कों व गलियों का निर्माण किया था, ताकि डॉ. मैके के अनुसार- “चलने वाली वायु उन्हें अपने आप ही साफ कर दे।”
2. उनकी जल निकासी की व्यवस्था बड़ी शानदार थी। नालियाँ बड़ी सरलता से साफ हो सकती थी।
3. किसी भी भवन को अपनी सीमा से आगे कभी नहीं बढ़ने दिया जाता था और न ही बर्तन पकाने वाली किसी भी भट्टी को नगर के अन्दर बनने दिया जाता था। अर्थात् अनाधिकृत निर्माण (unauthorised constructions) नहीं किया जाता था।
Q.10. हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख देवताओं एवं धार्मिक प्रथाओं की विवेचना करें। V.V.I.
Ans. हड़प्पावासी बहुदेववादी और प्रकृति पूजक थे। मातृदेवी इनकी प्रमुख देवी थी। मिट्टी की बनी अनेक स्त्री मूर्तियां, जो मातृदेवी की प्रतीक है, बड़ी संख्या में मिली है। देवताओं में प्रधान पशुपति या आद्य शिव थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर योगीश्वर की मूर्ति को पशुपति महादेव माना गया है। सिन्धुवासी नाग कूबड़दार साढ़, लिंग, योनि, पीपल के वृक्ष की भी पूजा करते थे। जलपूजा, अग्निपूजा और बलि प्रथा भी प्रचलित थी। मंदिरों और पुरोहितों का अस्तित्व नहीं था।
Q.11. हड़प्पा की मुहरों के विषय में आप क्या जानते हैं? V.V.I.
Ans. हड़प्पा संस्कृति की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ उसकी मुहरे (सील) हैं। ये सेलखड़ी पत्थर की बनी हैं। इनमें से अधिकांश सीलों पर लघु अभिलेख जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है, के साथ-साथ एकसिंगी जानवर, भैंस, बाघ, बकरी और हाथी की आकृतियाँ उकेरी हुई है। लम्बी दूरी के व्यापार इन सीलों का प्रयोग होता था। सील से न केवल समान के सही ढंग से पहुँच जाने का भरोसा हो जाता था, बल्कि यह भी पता चल जाता था कि समान किस व्यापारी ने भेजा है।
Q.12. हड़प्पाई सभ्यता के विस्तार का वर्णन करें।
Ans. हड़प्पाई संस्कृति का विस्तार बहुत अधिक था। यह लगभग 12,99,600 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी। इसमें पंजाब, सिंध, राजस्थान, गुजरात तथा बिलोचिस्तान के कुछ भाग और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती भाग सम्मिलित थे। इस प्रकार इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बिलोचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक था। इसके मुख्य केन्द्र हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, • कोटदीजी, चहुँदड़ों, आलमगीरपुर, आदि थे। उस समय कोई अन्य संस्कृति इतने बड़े क्षेत्र में विकसित नहीं थी।
. इस संस्कृति को हड़प्पाई संस्कृति का नाम इसलिए दिया जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम इस सभ्यता से संबंधित जिस स्थान की खोज हुई, वह हड़प्पा था। यह स्थान अब पाकिस्तान में है।
Q.13. C-14 विधि से आप क्या समझते हैं ?
Ans. कार्बन-14 कार्बन का रेडियोधर्मी आइसोटोप है, इसका अर्द्ध आयुकाल 5730 वर्ष का है। कार्बन डेटिंग को रेडियोएक्टिव पदार्थों की आयुसीमा निर्धारण करने में प्रयोग किया जाता है। कार्बनकाल विधि के माध्यम से तिथि निर्धारण होने पर इतिहास एवं वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी होने में सहायता मिलती है। यह विधि कई कारणों से विवादों में रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक रेडियो कार्बन का जितनी तेजी से क्षय होता है, उससे 27 से 28 प्रतिशत ज्यादा इसका निर्माण होता है। जिससे संतुलन की अवस्था प्राप्त होना मुश्किल है। ऐसा माना जाता है कि प्राणियों की मृत्यु के बाद भी वे कार्बन का अवशोषण करते हैं और अस्थिर रेडियोएक्टिव तत्व का धीरे-धीरे क्षय होता है। पुरातात्विक सैंपल में मौजूद कार्बन-14 के आधार पर उसकी डेट की गणना करते हैं।
Q.14. पुरातत्व से आप क्या समझते हैं (2015)
Ans. पुरातत्व वह विज्ञान है जिसके माध्यम से पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुई सामग्रियों की खुदाई कर अतीत के लोगों के भौतिक जीवन का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। किसी भी जाति की सभ्यता के इतिहास को जानने में पुरातत्व एक महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय स्रोत है। सम्पूर्ण हडणा • सभ्यता का ज्ञान पुरातत्व पर ही आधारित है।
Q.15 इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्व है ?[2013,2018]
Ans. अभिलेख उन्हें कहते है जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे हुए होते हैं। अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियाँ, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं जो उन्हें बनवाते हैं। अभिलेख की विशेषताएँ निम्नलिखित है-
• राजाओं के क्रियाकलाप तथा महिलाओं और पुरूषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिये गये दान का व्यौरा होता है। अभिलेख एक प्रकार से स्थायी प्रमाण होते हैं। कई अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी खुदी होती है। जिन अभिलेखों पर तिथि नहीं मिलती है, उनका काल निर्धारण आमतौर पर पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर काफी सुस्पष्टता से किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, लगभग 250 ई० पू० में अक्षर ‘अ’ प्र जैसा लिखा जाता था और 500 ईo में यह ‘प’ जैसा लिखा जाता था। प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था जो जनसामान्य की भाषाएँ होती थी।
Q.16. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों के रूप में सिक्कों का महत्व लिखें। V.V.I.
Ans. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों के रूप में, सिक्को का अपना विशेष महत्व है। प्राचीन काल के बहुत से सिक्के मिले है। ये सिक्के कई राजवंशों की तिथियाँ स्पष्ट करने में केवल हमारी सहायता ही नहीं करते, बल्कि कई प्रकार से इतिहास को जानने में भी हमारी सहायता करते है। हिन्द बैक्ट्रिया (Indo-Bactrian) और हिन्द यूनानी (Indo-Greek ) काल का इतिहास बताने वाले तो केवल सिक्के ही हैं। इसी प्रकार समुद्रगुप्त के समय के सिक्के हमें बताते हैं कि वह विष्णु का पुजारी था। सिक्को पर बना वीणा का चित्र यह सिद्ध करता है कि समुद्रगुप्त गायन विद्या का प्रेमी था। इसी प्रकार शक राजाओं (The Saka Rulers) के विषय में भी सिक्के हमारी बड़ी सहायता करते है। ये सिक्के हमे उस समय की आर्थिक दशा और राजाओं के राज्य विस्तार आदि के बारे में हमारी सहायता करते हैं।
Q.17. कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा ? V.V.I.
Ans. अशोक ने अपने शासन के आठवे वर्ष 261 ई० पू० में कलिंग के राजा के विरुद्ध युद्ध लड़ा। इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए और घायल हुए। इस युद्ध की विभीषिका ने अशोक को आन्दोलित कर दिया। फलतः उन्होंने अब युद्ध न करने की शपथ खाई। उसने भेरी घोष के स्थान पर ‘धम्म घोष’ की नीति अपनाई यही ‘धम्मघोष’ अशोक को प्राचीन इतिहास का महानतम शासक बनाया।
Q.18. गांधार कला की विशेषताओं का उल्लेख करें। [2009]
Ans. महायान बौद्ध धर्म के उदय के साथ गांधार कला का भी उदय हुआ। इनका विकास गांधार क्षेत्र (अविभाजित भारत का पश्चिमोत्तर क्षेत्र) में हुआ इसलिए इसे गांधार कला कहा गया। इस पर यूनानी कला शैली का प्रभाव है। इस कला में पहली बार बुद्ध और बोधिसत्व की मानवाकार मूर्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में बनी मूर्तियों में बालों के अलंकरण पर विशेष ध्यान दिया गया। ये मूर्तियों सजीव प्रतीत होती है।
गांधार कला की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
(a) गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय तथा तकनीक यूनानी है। (b) गांधार कला में निर्मित मूर्तियां साधारणतया स्लेटी पत्थर में है। (c) भगवान बुद्ध के बाल यूनान तथा राम की शैली में बनाये गये है। (d) मूर्तियों में शरीर के अंगों को ध्यानपूर्वक बनाया गया है। मूर्तियों में मोटे तथा सिल्वटदार वस्त्र प्रदर्शित किये गये हैं। (e) गांधार शैली में धातु कला तथा आध्यात्म कला का अभाव है। (f) गांधार शैली में बुद्ध अपोलो देवता के समान लगते हैं। यह सम्भवतः यूनानी प्रभाव के कारण है।
Q.19. महाजनपद से आप क्या समझते हैं [2017]
Ans. (i) महाजनपदों की संख्या 16 थी जिनमें से लगभग 12 राजतंत्रीय राज्य और 4 गणतंत्रीय राज्य थे।
(ii) महाजनपद को प्रायः लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकांस के साथ जोड़ा
(iii) ज्यादातर महाजनपदो पर राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के नाम से जाता है। प्रसिद्ध राज्यों में अनेक लोगों का समूह शासन करता था, इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था।
(iv) गणराज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर गंण के राजा सामूहिक नियंत्रण रखते थे।
(v) प्रत्येक महाजनपद एक राजधानी होती थी जिन्हें प्राय: किले से घेरा जाता था। किले बंद राजधानियों के रख-रखाव और प्रारम्भिक सेनाओं और नौकरशाही के लिए आर्थिक स्रोत की जरूरत होती थी।
(vi) महाजनपदों में लगभग छठी शताब्दी ई. पू. से ब्राह्मणो ने संस्कृति भाषा में धर्मशास्त्रों नामक ग्रंथों की रचनाएँ शुरू की। इनमें शासक सहित अन्य लोगों के लिए नियमों का निर्धारण किया गया और यह उम्मीद की गई कि सभी राज्यों में राजा क्षत्रिय वर्ण के ही होंगे।
(vii) शासकों का काम किसानो, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना माना जाता था। क्या वनवासियों और चरवाहों से भी कर रूप में कुछ लिया जाता था ? पर हमे इतना तो ज्ञात है कि सम्पत्ति जुटाने का एक वैध उपाय पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकट्ठा करना भी माना जाता था।
(viii) धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएं और नौकरशाही तंत्र तैयार कर लिये । बाकी राज्य अब भी सहायक सेना पर निर्भर थे जिन्हें प्राय: कृषक वर्ग से नियुक्त किया जाता था।
Q.20. देश की एकता हेतु अशोक ने कौन-से तीन मार्ग अपनाए ?
Ans. (क) राजनैतिक एकीकरण (Political unity) अशोक ने सम्पूर्ण देश को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। केवल कलिंग ही एक ऐसा देश था, जो उसके अधीन न था। ई.पू. 261 में उसने कलिग को भी जीत लिया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह उसकी अंतिम विजय थी, परन्तु उसने राजनैतिक एकीकरण का अपना विचार पूरा किया।
(ख) एक भाषा और एक लिपि (One language and one script) : अशोक ने अपने अभिलेखों में एक भाषा (प्राकृत) और एक ही लिपि (बाह्मी लिपि) का प्रयोग किया, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर उसने प्राकृत के साथ-साथ यूनानी तथा संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि के साथ खरोष्ठी अरेमाइक और यूनानी लिपियों का भी प्रयोग किया।
(ग) धार्मिक सहिष्णुता (Religious tolerance): अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था, परन्तु उसने कभी भी दूसरे धर्म वालों पर इसे अपनाने का दबाव नहीं डाला। अपने राज्य में रहने वाले विभिन्न धर्मों के मानने वालों को उसने अपने-अपने तरीको से पूजा-अर्चना आदि करने की छूट दे दी थी।