Bihar Board 12th Hindi Juthan Subjective Question 2025: जूठन, प्रश्न उत्तर ,(सीधें परीक्षा 2025 में लड़ेगा), @Officialbseb.com
Bihar Board 12th Hindi Juthan Subjective Question 2025:
1. कितने क्रूर समाज में रहे हैं हम, जहाँ भ्रम का कोई मोल ही नहीं, बल्कि निर्धनता को बरकरार रखने का षड्यंत्र ही था यह सब । (Sc. & Com. 20204 Arts 2017A
उत्तर- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत पाठ-2 के जूठन नामक शीर्षक से लिया गया है। हिन्दी गद्य साहित्य के महान लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि हैं। इस अंश में कथाकार ने अपनी आत्मकथा जूठन में दलित समाज के अभाव अनादर उत्पीड़न का मार्मिक वर्णन किया है। यह प्रसंग उस समय का है। जब लेखक नौवीं कक्षा में पढ़ रहा था। इसकी आर्थिक हालत बहुत कमजोर थी। पुस्तकें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। उन दिनों गाँव में मरनेवाले पशुओं को उठाने का काम लेखक के परिवार ही किया करते थे। इसके बदले मजदूरी नहीं मिलती थी। जिसका पशु मर जाता था, उसे जल्दी रहता था। इसलिए वह गाँव में आकर चिल्लाता था। देर होने पर गालियाँ बकता था । मरे हुए पशुओं को उठाना बड़ा कठिन काम होता था। समाज इतना कठोर था कि इतने कठिन परिश्रम के लिए कोई मजदूरी नहीं मिलती थी। जैसे लगता था कि समाज इनलोगों को गरीब ही बनाना चाहता था। उसका विचार था कि अगर ये लोग सुख से खाएँगे पियेंगे और रहेंगे तो जानवरों को उठानेवाला काम नहीं करेंगे। इसीलिए कठोर समाज का दलित लोगों पर अत्याचार होता था ।
2. ‘दिन रात मर खप कर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र जूठन, फिर भी किसी को शिकायत नहीं । कोई शर्मिंदगी नहीं, कोई पश्चाताप नहीं। ऐसा क्यों? सोचिए और उत्तर दीजिए।
उत्तर- ‘दिन रात मर खप कर भी हमारे पसीने की कीमत मात्र जूठन, फिर भी किसी को शिकायत नहीं। कोई शर्मिंदगी नहीं, कोई पश्चाताप नहीं ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय चुहड़े जाति के लोगों का काम त्यागियों के घर काम करने तथा मेरे हुए मवेशियों को उठाना आदि था। मवेशियों के चमडे बेचकर कुछ पैसे उन्हें मिल जाता था। समय पिछड़ी जातियों की स्थिती बहुत देनिय थी। उस समय चूहडो को खाने वाने के लिए जूठन ही मिलती थी। वे इन सभी चीजों को अपना चुके थे। वे इन सभी को वो अपनी किस्मत मान लिए थे।
3. सुरेंद्र की बातों को सुनकर लेखक विचलित क्यों हो जाते हैं ?
उत्तर- सुरेंद्र की बातो को सुनकर लेखक को अपने बचपन की बाते पाद आती है। ये बाते तब की है जब सुरेंद्र पैदा भी नहीं हुआ था। उसकी बड़ी बुआ की शादी थी। शादी से दस-बारह दिन पहले से लेखक की माँ-पिताजी ने सुखदेव सिंह त्यागी के घर-आँगन से लेकर बाहर तक के सभी काम किए थे। लेखक के माँ द्वारा भोजन माँगने पर उन्हें बेक् जत किया गया। सुखदेव सिंह ने जूठन के तरफ इशारा करते हुए कहते है “अपनी औकात में रह चूहड़ी। उठा टोकरा, दरवाजे से और चलती बन” इन्ही सभी बातों को याद करके लेखक विचलीत हो जाते है।
4. घर पहुँचने पर लेखक को देख उनकी माँ क्यों रो पड़ती हैं?
उत्तर- ब्रह्मदेव तगा का बैल रास्ते में मर गया था। उसे उठाने का काम लेखक के परिवार को मिला था। उस समय लेखक के घर पर कोई पुरुष नहीं था। जानवरों के चमड़े बेच कर कुछ पैसे मिलते थे। उसे लेखक की माँ गवाना नहीं चाहती थी। इसलिए उन्होंने लेखक को ना चाहते हुए भी स्कूल से बुलआकर सो ड़ चाचा के साथ उनकी सहायता के लिए भेज देती है लेकिन जब लेखक घर वापस आते हैं तो उनकी हालत को देखकर उनकी माँ रो पड़ी।
5. व्याख्या करें कितने क्रूर समाज में रहे हैं हम, जहाँ श्रम का कोई मोल ही नहीं बल्कि निर्धनता को बरकरा रखने का षडयंत्र ही था यह सब ।’
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ दलित आंदोलन के सुप्रसिद्ध लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि रचित आत्मकथा जूठन से उद्धृत अंमा है। लेखक ने यहाँ समाज की विद्रूपताओं पर कटाक्ष किया है। लेखक के पूरे परिवार द्वारा मेहनत और परिश्रम से कार्य किये जाने के बावजूद भी उन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती थी। रोटी की बात कौन कहे जूठन नसीब होना भी मुश्किल था। विद्यालय का हेडमास्टर चूहड़े के बेटे को विद्यालय में पढ़ाना नहीं चाहता है, उसका खानदानी काम ही उसके लिए है। चूहड़े का बेटा है लेखक, इसलिए पत्तलों का जूठन ही उसका निवाला है।
एक संस्मरण लेखक यहाँ प्रस्तुत करता है। मरे हुए पशुओं को उठाना भी बड़ा हो कठिन कार्य रहता है। उसके अगले-पिछले पैरों को रस्सी से बाँधकर बाँस की मोटी-मोटी बाहियों से उठाना पड़ता था। लेखक इतने परिश्रम काम के बदले में मात्र दस-पंद्रह रुपये हाथ में आने की बात कहता है। इस प्रकार के कठिन श्रम से इतनी आमदनी होना समाज की क्रूरता नहीं तो और क्या है? लेखक के अनुसार यहाँ श्रम का कोई मोल नहीं। श्रम का पारिश्रमिक नहीं के बराबर है। लेखक इसे निर्धनता के प्रति एक षडयंत्र मानते है।
6. लेखक की भाभी क्या कहती हैं? उनके कथन का महत्त्व बताइए ।
उत्तर- ब्रह्मदेव तगा का बेल रास्ते में मर गया था। उसे उठाने का काम लेखक के परिवार को मिला था। उस समय लेखक के घर पर कोई पुरुष नहीं था। जानवरों के चमड़े बेच कर कुछ पैसे मिलते थे। उसे लेखक की माँ गवाना नहीं चाहती थी। इसलिए उन्होंने लेखक को ना चाहते हुए भी स्कूल से बुलआकर सो ड़ चाचा के साथ उनकी सहायता के लिए भेज देती है लेकिन जब लेखक घर वापस आते हैं तो उनकी हालत को देखकर उनकी माँ रो पड़ी और लेखक की भाभी कहती है की ‘इनसे ये ना कराओं रह लेंगे. इन्हें इस गंदगी में ना घसीटो।” भूखे लेखक के भविष्य में होने वाले परिवर्तन का कारण भाभी का कथन ही है। यह कथन अंधेरे में रौशनी बनकर चमकते है।
7. विद्यालय में लेखक के साथ कैसी घटनाएँ घटती है ?
उत्तर- विद्यालय में लेखक के साथ बहुत अप्रिय घटनाएँ, घटती है। नीचली जाती के होने के कारण उन्हें वर्ग में बैठने नहीं दिया जाता है। हेडमास्टर द्वारा उन्हों वर्ग से बारह निकाला जाता है। और पूरे विद्यालय मे झाडू लगवाया जाता है। तीसरे दिन जब लेखक चुपचाप वर्ग में बैठ जाते है। तब हेडमास्टर उनकी गर्दन दबोचकर वर्ग से बाहर बरामदे में निकालते है और उन्हें पूरे मैदान में झाडू लगने को कहते है।
8. पिताजी ने स्कूल में क्या देखा? उन्होंने आगे क्या किया? पूरा विवरण अपने शब्दों में लिखे ।
उत्तर- पिताजी अचानक स्कूल के पास से गुजरते है और स्कूल में लेखक को झाडू लगते हुए देखते है। पिताजी ने लेखक से सारी बात की जानकारी ती और उनके हाथ से झाडू छीन कर फेंक दी और गुस्से से चीखने लगे, ‘कौन सा मास्टर है वो, जो मेरे लड़के से झाडू लगवावे है? जिसे सुनकर हेडमास्टर और सभी मास्ट बाहर आए। हेडमास्टर ने पिताजी को गाली देकर धमकाया लेकिन पिताजी पर धमकी का कोई असर नहीं हुआ।
9. बचपन में लेखक के साथ जो कुछ हुआ, आप कल्पना करें कि आपके साथ भी हुआ हो ऐसी स्थिति में आप अपने अनुभव और प्रतिक्रिया को अपनी भाषा में लिखिए।
उत्तर- बचपन में लेखक के साथ जो कुछ हुआ, वो नहीं हो ना चाहिए था। अगर वही घटना हमारे साथ होता तो हमे भी बहुत बुरा तथा अपनमांजक लगता। ऐसा व्यवहार करने वाले व्यक्ति पर बहुत क्रोध आएगा। उनके द्वारा किये गए इस व्यवहार का कारण भी जानेंगे। हम उनकी शिकायत भी करते तथा साथ ही साथ प्रयास करते की ऐसा घटना दूसरे के साथ न हो।
10. किन बातों को सोचकर लेखक के भीतर काँटे जैसे उगने लगते हैं ?
उत्तर- लेखक अपने बच्चपन की बातो को सोचते है। जब वे छोटे थे तब उनके परिवार के सभी लोग दूसरो के घर काम किया करते थे। जिसके बदले में उन्हें थोडा अनाज, जुठन और खुची रोटी दी जाती थी। शादी ब्याह के मौकों पर भी उन्हे लोगो की जूठी प्लेटे ही मिलती थी। वे पुरियो के टुकड़ों को सुखा लेते थे और बरसात के दिनों में नमक और मिर्च छिड़ककर खाते थे। इन्ही सभी बातो को सोचकर लेखक के भीतर कॉट जैसे उगने लगता है।
11. विद्यालय में लेखक के साथ कैसी घटना घटी ?
उत्तर- लेखक पढ़ने के लिए विद्यालय गए परन्तु वहाँ के हेडमास्टर कलीराम ने उनके साथ काफी क्रूर व्यवहार किया। उन्हें शीशम की टहनियों की झाडू से पूरे विद्यालय को साफ करने का आदेश दिया गया। दो दिनों तक तो बड़ी पीड़ा झेल कर लेखक विद्यालय की सफाई करते रहे परन्तु तीसरे दिन वे वर्ग के कोने में चुपचाप बैठ गये। किसी लड़के की नजर पड़ गई। उसने शोर मचा दिया। कलीराम ने उनकी गर्दन पकड़कर उठा लिया और बाहर बरामदे पर पटक दिया। उन्हें पुनः सफाई करने का आदेश दिया गया। उन्हें मैदान में सफाई करते पिता जी ने देख लिया। क्रोध से वे तमतमा उठे और जोर-शोर से बोलने लगे। कलीराम ने उन्हें गाली देकर भगा दिया।
12.लेखक द्वारा मैदान में झाडू लगाने के दृश्य का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर- लेखक शीशम की टहनियों की झाडू बनाकर मैदान की सफाई करते थे। पूरा बदन धूल से भर जाता था। मैदान बहुत बड़ा था। सफाई करने में उन्हें बड़ी पीड़ा होती थी। कमर में दर्द होने लगा था। मुँह में धूल भर गई थी। थककर चूर-चू होने पर भी वे आराम नहीं कर सकते थे। प्यास के कारण वे परेशान थे फिर भी पानी नहीं पी सकते थे। स्कूल का हेडमास्टर कलीराम उन पर नजर रखे था। घर में वे अपने भाइयों के लड़ले थे परन्तु स्कूल वे क्रूरतापूर्ण व्यवहार का शिकार हो गये थे।
13. गोबर उठाने के एवज में दलितों की क्या मिलता था?
उत्तर- गोबर उठाने के एवज में चूहड़ों को प्रतिवर्ष ढाई से अनाज प्रति मवेशी मिल जाता था। 10 जानवर वाले घर से लगभग 25 सेर अनाज मिल जाता था। इसके अतिरिक्त चोकर मिला आटे से बनी रोटियाँ उन्हें दोपहर में दे दी जाती थी। कभी-कभी जूठन भी दी जाती थी। शादी व्याह या श्राद्ध का भोज होन पर उन्हें जूठन दिया जाता था। उसे वे बड़े चांव से खाते थे।
14. तागाओं के घर शादी – व्याह के अवसर पर चूहड़ो को क्या मिलता था ?
उत्तर- तागाओं के घर शादी व्याह के अवसर पर भोज का – आयोजन होता था। बारातियों के भोजन के समय ये चूहड़ अपने- अपने टोकड़ों के साथ बाहर बैठे रहते थे। भोजन के बाद जूठन उनके टोकड़ों में डाल दिया जाता था। जूठन रूप में पूड़ी मिठाई इत्यादि मिलने पर ये बड़े खुश होते थे। जिसकी बाराती में जितना अधिक जूठन मिलता था उसकी ये उतनी अधिक बड़ाई करते थे।
15. क्या सोचकर लेखक का जी मितलाने लगा ?
उत्तर- लेखक के दिन बदल गए। वह अधिकारी बनकर मुम्बई में रहने लगा। रहन-सहन ऊँचा हो गया। गाँव का मालिक सुखदेव सिंह त्यागी का पोता सुरेन्द्र सिंह एक नौकरी के साक्षात्कार के सिलसिले में मुम्बई पहुँचा । लेखक के यहाँ ही उसने रात्रि विश्राम किया। स्वादिष्ट भोजन किया। उसने भोजन की बड़ाई की। बड़ाई की बात सुनकर उसे अपने बचपन के दिन याद आ गए। जिस सुखदेव सिंह का पोता आज स्वाद ले लेकर भोजन कर रहा है, उसी के यहाँ शादी व्याह के भोज के अवसर पर उसकी माँ को भोजन के लिए बड़ा अपमानित होना पड़ा जूठी पत्तलों का संग्रहकर जूठन निकाल कर वह घर पहुँची। उस जूठन की याद कर लेखक को जी मितलाने लगता | है। अर्थात जिस तागाओं का भोजन देखकर बचपन में वह बहुत लुभाता था। उन तागाओं के जूठन का आनन्द के साथ ग्रहण करता था। उस जूठन की बात सोच लेखक का मन मितलाने लगता है।