Bihar Board 12th Hindi Chapter-9 Subjective Question 2025: प्रगीत और समाज, प्रश्न उत्तर ,(सीधें परीक्षा 2025 में लड़ेगा), @Officialbseb.com

Bihar Board 12th Hindi Chapter-9 Subjective Question 2025

Bihar Board 12th Hindi Chapter-9 Subjective Question 2025: प्रगीत और समाज, प्रश्न उत्तर ,(सीधें परीक्षा 2025 में लड़ेगा), @Officialbseb.com

Bihar Board 12th Hindi Chapter-9 Subjective Question 2025:

गद्य-9 प्रगीत और समाज

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1. “कविता जो कुछ कह रही है उसे सिर्फ वही समझ सकता है जो इसके एकाकीपन में मानवता की आवाज सुन सकता है।” इस कथन का आशय स्पष्ट करें। साथ ही किसी उपयुक्त उदाहरण से अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर- आलोचकों की दृष्टि में सच्चे अर्थों में प्रगीतात्मकता का आरंभ यही है जिसका आधार है समाज के विरुद्ध व्यक्ति। इस प्रकार प्रगीतात्मकता का अर्थ है ‘एकांत संगीत’ अथवा अकेले कंठ की पुकार’ प्रगीतात्मकता की यह धारणा इतनी बद्धमूल हो गई कि आज भी प्रगीत के रूप में प्रायः उसी कविता को स्वीकार किया जाता है जो नितांत वैयक्तिक और आत्मपरक हो। चूँकि इस प्रकार के व्यक्तिवाद को जन्म देनेवाली औद्योगिक पूँजीवादी समाज व्यवस्था समाप्त होने की जगह और भी विकसित हो रही है इसीलिए फिलहाल प्रगीत कविता की इस मानसिक धारणा से छुटकारा संभव नहीं।

2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य-आदर्श क्या थे, पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के काव्य-आदर्श प्रबंधकाव्य ही थे, क्योकि प्रबंधकाव्य में मानव जीवन का एक पूर्ण श्य होता है जो छोटी कविताओ या प्रगीत मुक्तिकों (लिरिक्स) में नहीं मिलता है। उन्हें आधुनिक कविता से शिकायत थी क्योकि आधुनिक कविता मे प्रगीत मुक्तको को बढ़ावा दिया जाने लगा और इनकी रचनाओ का प्रचलन तेजी से बढ़ाने लगा। कहा जाने लगा कि आज कल कोई लंबी कविताएँ पढ़ना नहीं चाहता, किसी को फुरसत ही नहीं है।

3. ‘कला कला के लिए सिद्धांत क्या है?
उत्तर- कला कता के लिए सिद्धांत का अर्थ है की कला लोगों में कलात्मकता का भाव उत्पन्न करने के लिए है। इसके द्वारा रस एवं माधुर्य की अनुभूति होती है. इसका तात्पर्य है- प्रगीत मुक्तको का चलन अधिक होना और लंबी कविताओ को नकार देना।

4. प्रगीत को आप किस रूप में परिभाषित करेंगे। इसके बारे में क्या धारणा प्रचलित रही है ?
उत्तर- प्रगीत या लिरिक काव्य की एक एसी विधा है, जिसमें कवि की वैयक्तिकता और आत्मपरकता दोनों की प्रबल भावना रहती है। ऐसी कविताएँ छोटी होती है, जीवन के विविध पक्षों का उदघाटन जहाँ प्रबंधकाव्य में किया जाता है, वहाँ प्रगीत में क्षण-विशेष की आत्मप्रता की भावना की अभिव्यक्ति ही संभव होती है। प्रगितधर्मी कविताएँ छोटी होती है, इसमें जीवन की अनेक परिस्थितियों का चित्रण संभव नहीं। इसके बारे में एसी धरणा प्रचलित रही है कि इसकी अर्थभूमि अत्यंत ही सीमित है एवं एकांगी, जिसमे जीवन की प्रत्येक घटनाओं, अनुभूतियों की अभिव्यति संभव नहीं।

5. वस्तुपरक नाट्यधर्मी कविताओं से क्या तात्पर्य है? आत्मपरक प्रगीत और नाटवधर्मी कविताओं की पथार्थ-व्यंजना में क्या अंतर है ?
उत्तर- वस्तुपरक नाट्यधर्मी कविता से तात्पर्य है- किसी सामान्य विषय पर आधारित नाट्य कविताों से । यह आकार कीह ष्टि से कुछ लंबी होती है। आत्मपरक प्रगीत भी, नाट्धधर्मी लंबी कविताओ के समान ही होता है। आत्मपरक प्रगीत और नाट्यधर्मी कविता में मंचन का अंतर होता है।

6. हिंदी कविता के इतिहास में प्रगीतों का क्यार थान है, सोदाहरण स्यष्ट करें।
उत्तर- यदि विद्यापति को हिन्दी का पहला कवि माना जाये तो हिन्दी कविता का उदय ही गीत से हुआ, जिसका विकास आगे चलकर संतों और भक्तों की वाणी में हुआ। गीतों के साथ हिन्दी कविता का उदय कोई सामान्य घटना नहीं, बल्कि एक नई प्रगीतात्मकता (लिरिसिज्म) के विस्फोट का ऐतिहासिक क्षण है। जिसके धमाके से मध्ययुगीन भारतीय समाज की रूढ़ि-जर्जर दीवारे हिल उठीं, साथ ही जिसकी माधुरी सामान्य जन के लिए संजीवनी सिद्ध हुई।
हिन्दी कविता का इतिहास मुख्यतः प्रगीत मुक्तकों का है। गीतों ने ही जनमानस को बदलने में क्रांतिकारी भूमिका अदा की है। ‘रामचरितमानस की महिमा एक निर्विवाद सत्य है, लेकिन विनय-पत्रिका के पद एक व्यक्ति का अरण्यरोदन मात्र नहीं है। मानस के मर्मी भी यह मानते हैं कि तुलसी के विनय के पदों में पूरे युग की वेदना व्यक्त हुई है और उनकी चरम वैयक्तिकता ही परम सामाजिकता है। तुलसी के अलावा कबीर सूर मीरा नानक, रैदास आदि। अधिकांश संतों ने प्रायः दोहे और गेय पद ही लिखे हैं।

7. आधुनिक प्रगीत काव्य किन अर्थों में भक्ति काव्य से भिन्न एवं गुप्त जी आदि के प्रबंध काव्य से विशिष्ट है? क्या आप आलोचक से सहमत हैं? अपने विचार दें।
उत्तर- आधुनिक प्रगीत काव्य का उदय बीसवी सदी में रोमैंटिक उत्थान के साथ हुआ, जिसका संबंध भारत के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष से है। भक्ति काव्य से अलग इस रोमेटिक प्रगीतात्मकता के मूल में एक नया व्यक्तिवाद है, जहाँ ‘समाज’ के बहिष्कार के द्वारा ही व्यक्ति अपनी सामाजीकता प्रमाणित करता है। इन रोमेटिक प्रगीतों में भक्तिकाव्य जैसी भावना तो नही है किंतु आत्मीयता और एंद्रियता जरूर है। मैथिलीशरण गुप्त जो कि राष्ट्रीयता संबंधी विचारी तथा भावों को काव्य का रूप देते थे। उनका काव्य भी प्रबंध काव्य था। उस समय उन्हें सामाजिक माना गया। लेकिन विद्वान जनो को यह एहसास हो गया कि इन रोमेटिक प्रगीतों में भी सामाजिकता है।

8. कविता जो कुछ कह रही है उसे सिर्फ वहीं समझ सकता है जो इसके एकाकीपन में मानवता की आवाज सुन सकता है। इस कथन का आशय स्पष्ट करें। साथ ही, किसी उपयुक्त उदाहरण से अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर- प्रस्तुत अंश नामवर सिंह रचित निबंध प्रगीत और समाज से उद्धृत है। ऐसा प्रतीत होता है कि कवि को एकाकीपन में पीड़ित मानवता की आवाज एकान्त में सुनायी पड़ रही है। थियोडोर एडोनों ने कहा है कि व्यक्ति अकेला है. यह ठीक है परन्तु उसका आत्मसंघर्ष अकेला नहीं है। उसका आत्मसंघर्ष समाज में प्रतिफलित होता है। यही कारण है कि बच्चन जैसे कवि सरल सपाट निराशा को अलग करते हुए एक गहरी सामाजिक सच्चाई को व्यक्त करते हैं। राम की शक्तिपूजा में राम का जो आत्मसंघर्ष है वह अंततः सामाजिक सच्चाई को व्यक्त करता है। कवि अपने अकेलेपन में समाज के बारे में सोचता है। नई प्रक्रिया द्वारा उसका निर्माण करना चाहता है। यहाँ व्यक्ति बनाम समाज जैसे सरल ऋद्ध का स्थान समाज के अपने अंतर्विरोधों ने ले लिया है। व्यक्तिवाद उतना आश्वस्त नहीं रहा बल्कि स्वयं व्यक्ति के अंदर भी अंतः संघर्ष पैदा हुआ। विद्रोह का स्थान आत्मविडंबना ने ले लिया। यहाँ समाज के उस दबाव को महसूस किया जा सकता है जिसमें अकेल होने की विडंबना के साथ उसका अंतर्वद्र भी है।

9. मुक्तिबोध की कविताओं पर पुनर्विचार की आवश्यकता क्यों है, आलोचक के इस विषय में क्या निष्कर्ष हैं?
उत्तर- मुक्तिबोध ने सिर्फ लंबी कविताएँ ही नहीं लिखी। उन्होंने अनेक छोटी कविताएँ भी लिखी है, और छोटी होने के बावजूद लंबी कविताओ से किसी कदर कम सार्थक नही है। वे कविताएँ अपने रचना-विन्यास मे प्रगीतधर्मी है। कुछ विचार से तो नाटकीय रूप के बावजूद मुक्तिबोध की काव्यभूमि मुख्यतः प्रगीतभूमि है। मुक्तिबोध का समूचा काव्य मूलतः आत्मपरक है इसलिए उनकी कविताओ पर पूर्णविचार की आवश्यकता है। लेकिन यह भी है कि यह कविता आत्मपरक होते हुए भी प्रत्येक कविता को गत्ति और ऊर्जा प्रदान करती है।

10. त्रिलोचन और नागार्जुन के प्रगीतों की विशेषताएँ क्या है? पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। नामवर सिंह ने त्रिलोचन के सॉनेट वहीं त्रिलोचन है वह और नागार्जुन की कविता ‘तन गई रीढ़’ का उल्लेख किया है, ये दोनों रचनाएँ ‘पाठ के आस-पास खंड में दी गई हैं, उन्हें भी पढ़ते हुए अपने विचार दें।
उत्तर- त्रिलोचन के प्रगीतों में जीवन, जगत और प्रकृति के जितने रंग-बिरंगे चित्र मिलते है, वे दूसरे जगह दुर्लभ है। वही नागार्जुन की बहिर्मुखी आक्रामक काव्य प्रतिभा के बीच आत्मपरक प्रगीतात्मक अभिव्यक्ति के क्षण कम ही आते है लेकिन जब आते है तो उनकी विकट तीव्रता प्रगीतो के परिचित संसार को एक झटके से छिन्न-भिन्न कर देती है।

11. मितकथन में अतिकथन से अधिक मशक्ति होती है’, केदारनाथ सिंह की उद्धृत कविता से इस कथन की पुष्टि करें। दिगंत (भाग 1) में प्रस्तुत ‘हिमालय’ कविता के प्रसंग में भी इस कथन पर विवार करें।
उत्तर- मितकथन का अर्थ होता है कम शब्दों में अधिक कहना’ जो कि केदारनाथ सिंह की कविता में देखने को मिलता है। उन्होने बड़ा ही सीमित शब्दो मे एक विस्तृत भाव को व्यक्त किया गया है।

12. हिंदी की आधुनिक कविता की क्या विशेषताएँ आलोचक ने बताई है ?
उत्तर- हिन्दी की आधुनिक कविता में नई प्रगीतात्मकता का उभार देखते है। वे देखते है आज के कवि को न तो अपने अंदर झांककर देखने में संकोच है न बाहर के यथार्थ का सामना करने में हिचक। अंदर न तो किसी असंदिग्ध विश्व ष्टि का मजबूत खुटा गाड़ने की जिद है और न बाहर की व्यक् था को एक विराट पहाड़ के रूप में आँकने की हवस बाहर छोटी-से-छोटी घटना, थिति, वस्तु आदि पर नजर है और कोशिश है उसे अर्थ देने की। इसी प्रकार बाहर की प्रतिक्रियास्वरूप अंदर उठनेवाली छोटी-से- छोटी लहर को भी पकड़कर उसे शब्दों में बांध लेने का उत्साह है। एक नए स्तर पर कवि व्यक्तित्व अपने और समाज के बीच के रिश्ते को साधने की कोशिश कर रहा है और इस प्रक्रिया में जो व्यक्तित्व बनता दिखाई दे रहा है वह निश्चय हीं नए ढंग की प्रगीतात्मकता के उभार का संकेत है।

 

 

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