Bihar Board 12th Hindi Chapter-13 Question Answer 2025: शिक्षा , प्रश्न उत्तर ,(सीधें परीक्षा 2025 में लड़ेगा) याद कर ले, @Officialbseb.com
Bihar Board 12th Hindi Chapter-13 Question Answer 2025:
गद्य-13 शिक्षा
1. हम नूतन विश्व के निर्माण करने की आवश्यकता महसूस करते हैं हम में से प्रत्येक व्यक्ति पूर्णतया मानसिक और आध्यात्मिक क्रांति में होता है। [Sc. & Com. 2016A/
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘दिगंत’ भाग-2 के ‘शिक्षा’ शीर्षक पाठ से ली गई है। लेखक संसार को एक नयापन देना चाहता है। उनका कहना है कि नूतन विश्व के निर्माण के लिए आवश्यक है कि स्वतंत्र और निर्भीक वातावरण में सत्य और यथार्थ का साक्षात्कार कर समाज के अव्यवस्थित ढाँचे को अनुकूल बनाने का सतत प्रयत्न किया जाए। सम्पूर्ण विश्व ही परस्पर विरोधी विश्वासों, विभिन्न वर्गों, जातियों, पृथक्-पृथक् विरोधी राष्ट्रीयताओं और हर प्रकार की मूढ़ता और क्रूरता में छिन्न-भिन्न होता जा रहा है। नूतन विश्व के निर्माण हेतु हमें क्रांति सीखना और प्रेम करना इन तीनों सहज मानव गुणों को अपने आप में समाहित करना होगा। क्योंकि ये तीनों पृथक क्रियाएँ नहीं हैं।
2. आप उस समय महत्त्वाकांक्षी रहते हैं जब आप सहज प्रेम से कोई कार्य सिर्फ कार्य के लिए करते हैं। [Sc. & Com. 20164]
उत्तर- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘शिक्षा’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। यह महान चिंतक और दार्शनिक जे० कृष्णमूर्ति के संभाषणों में से लिया गया एक संभाषण है। इस गद्यावतरण में महत्त्वाकांक्षा के चलते पैदा होनेवाली सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक विकृतियों का उल्लेख हुआ है। प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा लेखक कहना चाहते हैं कि महत्त्वाकांक्षी केवल अपने विषय में ही सोचता है, अतः वह क्रूर हो जाता है वह दूसरों को धकेलकर अपनी महत्त्वाकांक्षा का पूरा करना चाहता है। क्षुद्र संघर्ष करने में जीवन सृजनशील नहीं बनता। प्रेम के अनुभव के साथ तल्लीन होकर कोई कार्य करने से हमारी क्षुद्र महत्त्वाकांक्षा दबी रहती है, इस स्थिति में हमारे ह्रास की संभावना समाप्त हो जाती है। शिक्षा हमें वही कार्य करना सिखाती है जिसमें हमारी रूचि और दिलचस्पी हो। रूचि के बगैर किया गया कोई काम ऊब, हास और मृत्यु प्रदान करता है। प्रेम से किए गए कार्यों से ही नूतन समाज का निर्माण संभव है।
3. यहाँ प्रत्येक मनुष्य किसी-न-किसी के विरोध में खड़ा है और किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचने के लिए प्रतिष्ठा, सम्मान, शक्ति व आराम के लिए निरन्तर संघर्ष कर रहा है। [Arts 202041
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ जी- बी- कृष्णमूर्ति के संभाषण ‘शिक्षा’ से ली गई हैं। इसमें संभाषक कहना चाहते हैं हमने ऐसे समाज का निर्माण कर रखा है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे के विरोध में खड़ा है। चूँकि यह व्यवस्था इतनी जटिल है कि यह शोषक और शोषित वर्ग में बँट गया है। मनुष्य के द्वारा मनुष्य का शोषण हो रहा है। एक-दूसरे पर वर्चस्व के लिए आपस में होड़ है। यह पूरा विश्व ही अंतहीन युद्धों में जकड़ा हुआ है। इसके मार्गदर्शक राजनीतिज्ञ बने हैं जो सतत् शक्ति की खोज में लगे हैं। यह दुनिया वकीलों, सिपाहियों और सैनिकों की दुनिया है। यह उन महत्त्वाकांक्षी स्त्री-पुरुषों की दुनिया है जो प्रतिष्ठा के पीछे दौड़े जा रहे हैं और इसे पाने के लिए एक-दूसरे के साथ संघर्षरत हैं। दूसरी ओर अपने-अपने अनुयायियों के साथ संन्यासी और धर्मगुरु हैं जो इस दुनिया में या दूसरी दुनिया में शक्ति और प्रतिष्ठा की चाह कर रहे हैं। यह विश्व ही पूरा पागल है, पूर्णतया भ्रांत। यहाँ एक ओर साम्यवादी पूँजीपति से लड़ रहा है तो दूसरी ओर समाजवादी दोनों का प्रतिरोध कर रहा है। इसीलिए संभाषक कहता है कि यहाँ प्रत्येक मनुष्य किसी-न-किसी के विरोध में खड़ा है और किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचने के लिए प्रतिष्ठा, सम्मान, शक्ति व आराम के लिए संघर्ष कर रहा है। यह सम्पूर्ण विश्व ही परस्पर विरोधी विश्वासों, विभिन्न वर्गों, जातियों, पृथक-पृथक विरोधी राष्ट्रीयताओं और हर प्रकार की मूढ़ता और क्रूरता में छिन्न-भिन्न होता जा रहा है। और हम उसी दुनिया में रह सकने के लिए शिक्षित किए जा रहे हैं। इसीलिए संभाषक को दुख । है कि व्यक्ति निर्भयतापूर्ण वातावरण के बदले सड़े हुए समाज में जीने को विवश है। अतः हमें अविलम्ब एक स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण तैयार करना होगा ताकि हम उसमें रहकर अपने लिए सत्य की खोज कर सकें, मेधावी बन सकें ताकि हम अपने अन्दर सतत् एक गहरी मनोवैज्ञानिक विद्रोह की अवस्था में रह सकें।
4. शिक्षा का क्या अर्थ है एवं इसके क्या कार्य हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर- शिक्षा का अर्थ है- जीवन की सच्चाई की खोज करना शिक्षा का असली काम है की वो हमारे पूरे जीवन को समझने में हमारी मदद करे और एक ऐसा माहौल बनाने के लिए प्रेरित करे जहाँ हर कोई स्वतंत्र हो। शिक्षा का काम सिर्फ नौकरी और व्यवसायों के जरिए पैसा कमाना नहीं है।
5. ‘जीवन क्या है ?’ इसका परिचय लेखक ने किस रूप में दिया है?
उत्तर- जीवन का अर्थ अपने लिए सत्य की खोज और यह तभी संभव है। जब स्वतंत्रता हो. जब हमारे अंदर में सतत क्रांति की ज्वाला प्रकाशमन हो।
6. जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती। क्यों?
उत्तर- यह कथन बिल्कुल सत्य है की जहाँ भय वहाँ मेधा नहीं हो सकती क्योंकि भय के कारण इंसान किसी भी काम में अपना सह प्रतिशत नहीं दे पाता है। उसके मन में असफलता या हानि का डर बैठ जाता है। ज्यादातर इंसान अपना जीवन भय में गुजारते हैं। हमें नोकरी छूटने का, समाज का, परंपराओं का भय रहता है। इस भय की वजह से हम अपने जीवन के असली मतलब को नहीं समझ पाते हैं। इसी कारण मेधा का विकास नहीं हो पाता है।
7. जीवन में विद्रोह का क्यार थान है?
उत्तर- जीवन में विद्रोह का महत्वपूर्णस् थान है। मनुष्य इस जीवन की गहराई, इसकी सुंदरता और इसके ऐश्वर्या को तभी महसूस कर पायेगा। जब वो प्रत्येक वस्तु के खिलाफ विद्रोह करेगा। जब हम संगठित धर्म, प्राचीन परंपराओं तथा इस सड़े हुए समाज के खिलाफ विद्रोह करेंगे तभी एक मानव की भांति सत्य की खोज कर पाएंगे।
8. व्याख्या करें यहाँ प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी के विरोध में खड़ा है और किसी सुरक्षितस् थान पर पहुँचने के लिए प्रतिष्ठा, सम्मान, शाक्ति व आराम के लिए निरंतर संघर्ष कर रहा है।
उत्तर- उपयुक्त पंक्ति जे० कृष्णमूर्ति द्वारा लिखित शिक्षा पाठ से ली गई है। लेखक इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि हर कोई अपने सुख के लिए दूसरे का विरोध कर रहा है। यह विद्रोह भी भिन्न- भिन्न चीजों के लिए है जैसे किसी सुरक्षितस् थान पर पहुँचने के लिए जिससे हमारे सभी भय दूर हो जाए अथवा प्रतिष्ठा, सम्मान, शक्ति तथा आराम पाने के लिए। इन सबके लिए मनुष्य लगातार संघर्ष कर रहा है।
9. नूतन विश्व का निर्माण कैसे हो सकता है?
उत्तर- समाज में चारों ओर भय फैला हुआ है। लोग एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या-द्वेष से भरे हुए हैं। विश्व के सभी देश पतन की ओर अग्रसर हैं। इसे रोकना मानव समाज के लिए चुनौती है। हमें स्वतंत्रतापूर्ण वातावरण तैयार करना होगा, जिसमें व्यक्ति अपने लिए सत्य की खोज कर सके तथा मेधावी बन सके। सत्य की खोज वही कर सकते हैं। जो निरंतर विद्रोह की अक्क था में हो। स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जिएंगे तो निसंदेह ही नूतन विश्व का निर्माण होगा।
10. क्रांति करना, सीखना और प्रेम करना तीनों पृथक-पृथक प्रक्रियाएँ नहीं हैं, कैसे?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ जे० कृष्णमूर्ति के लेख शिक्षा से उद्धृत अंश है। लेखक का कथन है कि प्रेम्, कांति और सीखना पृथक क्रियाएँ नहीं हैं। लेखक इसका कारण बताते हैं कि महत्वाकांक्षा को पूरा करने के क्रम में क्रांति, सीखना, प्रेम सभी क्रियाएँ हैं। समाज को अराजक र धति से निकालने के लिए समाज में कांति की आवश्यकता है। तभी सुव्यर्क थत समाज का निर्माण हो सकेगा। सचमुच अराजक र धति हमारे लिए एक चुनौती है। इस ज्वलंत समस्या का समाधान क्रांति द्वारा ही संभव है। इस दौरान हम जो भी करते हैं वह वास्तव में अपने पूरे जीवन से सीखते हैं। तब हमारे लिए न कोई गुरु रह जाता है न मार्गदर्शक। हर वस्तु हमें एक नयी सीख दे जाती है। तब हमारा जीवन स्वयं गुरु हो जाता है और हम सीखते जाते हैं। जिस किसी वस्तु को सीखने के क्रम में गहरी दिलचस्पी रखते हैं उसके संबंध में हम प्रेम से खोज करते हैं। उस समय हमारा संपूर्ण मन, संपूर्ण सत्ता उसी में रमी रहती है। हमारी इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने के क्रम में कांति. सीखना, प्रेम सब साथ-साथ चलता है।