Bihar Board 12th Biology Chapter -1 Question Answer 2025: जीवों में जनन, Question & Answer, यहां से याद करें, @Officialbseb.com

Bihar Board 12th Biology Chapter -1 Question Answer 2025

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Bihar Board 12th Biology Chapter -1 Question Answer 2025:

 

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1. जीवों के लिए जनन क्यों अनिवार्य है?
उत्तर- जनन जीवों का बहुत महत्वपूर्ण गुण है। इसी की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी पर विभिन्न जीवों का अस्तित्व बना हुआ है।

2. जनन की अच्छी विधि कौन-सी है और क्यों ?
उत्तर- लैंगिक जनन (Sexual reproduction) विधि को अच्छा माना जाता है। इस विधि से बनी संततियाँ (Offspring’s) जनकों (Parents) से बिल्कुल भिन्न होती है क्योंकि इनमें माता और पिता दोनों से जनन द्रव्य प्राप्त होता है। साथ ही युग्मक (Gamete) बनने से पहले गुणसूत्रों (Chromo-somes) में जीन विनिमय (Crossing over) की क्रिया के फलस्वरूप नये संयोजन (Combinations) बनते हैं जो युग्मकों (Gametes) द्वारा संततियों में आ जाते हैं। अतः लैंगिक जनन से संतति में उत्पन्न होने वाली भिन्नताएँ (Variations) जैव विकास (Organic evolution) का आधार होती है।

3. अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न हुई संतति को क्लोन (Clone) क्यों कहा गया है?
उत्तर- आकारिकीय (Morphologically) तथा आनुवांशिकीय रूप से (Ge- netically) एक समान जीवों के लिये क्लोन (clone) शब्द की रचना की गई है। अलैंगिक जनन के परिणामस्वरूप जो संतति (Offspring) उत्पन्न होती है, वह केवल एक-दूसरे के समरूप ही नहीं, बल्कि अपने जनक के आनुवांशिकीय रूप से भी समान होती है। इसलिये अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति को क्लोन (Clone) कहा गया है।

4 लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप बने संतति को जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं, क्यों? क्या यह कथन हर समय सही होता है?
उत्तर- अधिकांश जलीय जीवों में बाह्य निषेचन (External fertilization) शरीर के बाहर जलीय माध्यम में होता है। इसमें नर एवं मादा युग्मकों का अत्यधिक मात्रा में शरीर से बाहर मुक्त होना एक साथ बहुत-से युग्मकों में निषेचन क्रिया को प्रदर्शित करता है जिससे जीवों की अत्यधिक आबादी उत्पन्न होती है तथा परजीवियों के भक्षण के बावजूद भी इनका अस्तित्व बना रहता है। दूसरी ओर आन्तरिक निषेचन (Internal fertilization) करने वाले जीवों में युग्मनज (Zygote) का निर्माण मादा जीवधारी के शरीर के भीतर होता है तथा प्रसव क्रिया के द्वारा शिशु को जन्म दिया जाता है। प्रसव (Parturi- tion) के पश्चात् शिशु की देखभाल तथा संरक्षण से सजीव प्रजक जीवों के जीवित रहने के अवसर अधिक होते हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप बनी संतति को जीवित रहने के अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं। किन्तु यह कथन हर समय सही नहीं होता है क्योंकि बाह्य निषेचन का यह दुर्गुण भी है कि परभक्षियों तथा अन्य आपदाओं द्वारा संततियों की संख्या में भारी कमी हो जाती है। इसी प्रकार आन्तरिक निषेचन में प्रसव के पश्चात् संतति अपने संरक्षण के लिए जनकों पर आश्रित रहते हैं।

5. अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति लैंगिक जनन द्वारा बनी संतति से किस प्रकार से भिन्न है?
उत्तर- अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति एक-दूसरे के और अपने जनक के आकारिकीय तथा आनुवांशिकीय रूप से समरूप होती है। इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति अकारिकीय तथा आनुवांशिकीय रूप से एक-दूसरे के तथा जनकों के समरूप नहीं होती है, इनमें विभिन्नताएँ (Varia- tions) पायी जाती हैं।

6. कायिक प्रवर्धन से आप क्या समझते हो? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दीजिए।
उत्तर- कायिक प्रवर्धन अलैंगिक जनन ही होता है। यह पादपों में होता है। कायिक प्रवर्धन में पौधे का सम्पूर्ण शरीर या शरीर का कोई भाग (पुष्प को छोड़कर) भाग लेता है। कायिक जनन (प्रवर्धन) प्राकृतिक तथा कृत्रिम विधियों द्वारा प्राप्त होता है। प्राकृतिक कायिक जनन (प्रवर्धन) पौधों की जड़, तना अथवा पत्तियों से हो सकता है। कृत्रिम कायिक प्रवर्धन कलम लगाना, दाब लगाना, रोपण तथा ऊतक संवर्धन आदि विधियों द्वारा किया जाता है।
उदाहरण-1. प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन द्वारा आलू, अदरक, अरबी तथा केले की खेती की जाती है। 2. कृत्रिम कायिक प्रवर्धन द्वारा गन्ना, गुलाब, सेब, चमेली, नींबू आदि की खेती की जाती है।

7. व्याख्या कीजिए-
(क) किशोर चरण, (ख) प्रजनक चरण, (ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था।
उत्तर- (क) किशोर चरण (Juvenile phase)- सभी जीव अपने जीवन में वृद्धि की एक निश्चित अवस्था एवं परिपक्वता तक पहुँचते हैं। इसके पश्चात् ही लैंगिक जनन कर सकते हैं। वृद्धि का यह काल किशोर अवस्था या किशोर चरण कहलाता है। पादपों में यह कायिक प्रावस्था (Vegetative phase) कहलाती है। यह प्रावस्था विभिन्न जीवों में अलग-अलग अवधि की होती है।
(ख) प्रजनक चरण (Reproductive phase) – किशोर चरण या किशोरावस्था/कायिक प्रावस्था की समाप्ति ही प्रजनक चरण या जनन प्रावस्था का आरम्भ होती है। इस प्रावस्था को उच्च पादपों में आसानी से तब देखा जा सकता है जब उनके पुष्प आने लगते हैं। प्राणियों में भी अनेक शारीरिकी एवं आकारिकी परिवर्तन आ जाते हैं। इस चरण में जीव संतान उत्पन्न करने योग्य हो जाता है। विभिन्न जीवों में प्रजनक चरण की अवधि भी भिन्न-भिन्न होती है।
(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था (Senescent phase)- जीवों की प्रजनक आयु की समाप्ति को जीर्णता या वृद्धावस्था के मापदण्ड के रूप में माना जा सकता है। यह विकास चक्र की अन्तिम अवस्था या तीसरी अवस्था मानी जा सकती है। शरीर में जीवन की अवधि के अन्तिम चरण में सहवर्ती परिवर्तन होने लगते हैं; जैसे-उपापचय क्रिया मन्द होने लगती है, ऊतकों का क्षरण होने लगता है, शरीर के अंग धीरे-धीरे कार्य करना बन्द कर देते हैं और वृद्धावस्था आ जाती है। अन्ततः जीवधारी की मृत्यु हो जाती है।

8. अपनी जटिलता के बावजूद बड़े जीवों ने लैंगिक प्रजनन को पाया है, क्यों?
उत्तर- लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) से प्राप्त संतति अपने जनकों के समरूप नहीं होती, इनमें विभिन्नताएँ (Variations) पायी जाती हैं। इन विभिन्नताओं के कारण जीवधारी स्वयं को अपने वातावरण से अनुकूलित किये रहते हैं। विभिन्नताओं के कारण जैव विकास (Evolution of organisms) होता है। अतः लैंगिक जनन जीवों को प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने में सहायक होता है। यही कारण है बड़े जीवधारियों ने अपनी जटिलता के बावजूद लैंगिक प्रजनन को अपनाया है।

9. व्याख्या करके बतायें कि अर्द्धसूत्री विभाजन तथा युग्मक जनन सदैव अन्तर्सम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होते हैं।
उत्तर- लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों में प्रजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन तथा युग्मक जनन प्रक्रियाएँ होती हैं। युग्मक जनन युग्मकों की गठन प्रक्रिया को संदर्भित करता है। युग्मक एक प्रकार की अगुणित कोशिकाएँ होती हैं। लैंगिक जनन करने वाले जीवों में दो प्रकार के युग्मक बनते हैं- नर युग्मक तथा मादा युग्मका अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) के फलस्वरूप इन कोशिकाओं के गुणसूत्रों के बीच जीन विनिमय (Crossing over) होता है जिससे गुणसूत्र खण्डों की अदला-बदली हो जाती है।
अर्द्धसूत्री विभाजन के अन्त में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है और यह आधी संख्या ही बीजाणुमातृ कोशिका से बनने वाले युग्मक में जाती है। अतः स्पष्ट है कि युग्मक अगुणित (Haploid = n) होते हैं। अतः युग्मक जनन तथा अर्द्धसूत्री विभाजन क्रियायें अन्तर्सम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होती हैं। निषेचन के फलस्वरूप नर तथा मादा अगुणित संयुग्मन द्वारा द्विगुणित युग्माणु बनता है। इसके फलस्वरूप नये जीव का विकास होता है।

10. प्रत्येक पुष्पीय पादप के भाग को पहचानिये तथा लिखिये कि वह अगुणित (n) है या द्विगुणित (2n) – (क) अण्डाशय (ख) परागकोष, (ग) अण्डा (या डिम्ब) (घ) परागकण (ङ) नर युग्मक, (च) युग्मन
उत्तर- पुष्पीय भाग-
(क) अण्डाशय (Ovary) – द्विगुणित (2n)
(ख) परागकोष (Anther) – द्विगुणित (2n)
(ग) अण्डा या डिम्ब (Ova) – अगुणित (n)
(घ) परागकण (Pollen grain)- अगुणित (n)
(ङ) नर युग्मक (Male gamete) – अगुणित (n)
(च) युग्मनज (Zygote) – द्विगुणित (2n)

11. बाह्य निषेचन को परिभाषित कीजिए। इसके नुकसान बताइए।
उत्तर- दो भिन्न युग्मकों (Gametes, नर युग्मक तथा मादा युग्मक) के पूर्ण रूप से संलयन (Fusion) को निषेचन (Fertilization) कहते हैं। दोनों युग्मक संलयन करके युग्मनज (Zygote) का निर्माण करते हैं। अधिकांश जलीय जीवों, जैसे-शैवालों, मछलियों एवं उभयचरों (Amphibians) में निषेचन जीव के शरीर के बाहर जलीय माध्यम में होता है। यह जल में सम्पन्न होता है। इसे बाह्य निषेचन (External Fertilization) कहते हैं।।
बाह्य निषेचन की हानियाँ (Demerits of External Fertilization)-
(i) जीवधारियों को अत्यधिक संख्या में नर एवं मादा युग्मकों को शरीर से बाहर मुक्त करना पड़ता है जिससे निषेचन के अवसर बढ़ जायें अर्थात् इनमें युग्मक संलयन के अवसर कम होते हैं।
(ii) वाह्य निषेचन का एक दुर्गुण यह भी है कि परभक्षियों तथा शिकार तथा अन्य आपदाओं द्वारा युग्मकों की संख्या में भारी कमी हो जाती है।

12. एक पुष्प में निषेचन पश्च परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- पुष्यीय पादपों में युग्मनज का निर्माण बीजाण्ड के अन्दर होता है। निषेचन के पश्चात् पुष्प के बाह्य दल पंखुड़ी तथा पुंकेसर मुरझाकर गिर (शड़) जाते हैं। यद्यपि स्त्रीकेसर पादप से जुड़ा रहता है। युग्मनज भ्रूण में तथा बीजाण्ड बीज में विकसित हो जाता है। अण्डाशय फल के रूप में विकसित होता है जो आगे चलकर फल की भित्ति का निर्माण करता हैइसे फलभित्ति (Pericarp) कहते हैं। इसका कार्य फल को सुरक्षा प्रदान करना है। विकिरण के पश्चात् बीज अनुकूल परिस्थितियों के आने पर अंकुरित होता है तथा नये पादप को जन्म देता है।

13. एक द्विलिंगी पुष्प क्या है? अपने आस-पास से पाँच द्विलिंगी पुष्पों को एकत्रित कीजिए और अपने शिक्षक की सहायता से इनके सामान्य (स्थानीय) एवं वैज्ञानिक नाम पता कीजिए।
उत्तर- द्विलिंगी पुष्प (Bisexual flower)- जब किसी पुष्प में पुमंग (Androecium) तथा जायांग (Gynoecium) अर्थात् नर तथा मादा दोनों संरचनाएँ होती हैं तो इसे द्विलिंगी पुष्प कहते हैं। साधारणतः समीपवर्ती क्षेत्रों में पाये जाने वाले द्विलिंगी पुष्प निम्नलिखित हैं-
(i) सरसों – ब्रेसिका कैम्पेस्ट्रिस (Brassica campestris),
(ii) मूली – रैफेनस सैटाइवस (Raphnus sativus),
(iii) मटर पाइसम सैटाइवम (Pisum sativum),
(iv) सेम- डॉलीकस लबलब (Dolichos lablab),
(v) गुड़हल-हिबिस्कस रोजा सिनेन्सिस (Hibiscus rosa sinensis)

14. किसी भी कुकरविट पादप के कुछ पुष्पों की जाँच करें और पुंकेसरी एवं स्त्रीकेसरी पुष्पों को पहचानने की कोशिश करें। क्या आप अन्य एकलिंगी पौधों के नाम जानते हैं?
उत्तर- कुकरबिट पादप पुष्प एकलिंगी होते हैं। ऐसे पुष्प जिनमें केवल नर जननांग अर्थात् पुंकेसर (Stamens) पाये जाते हैं, मादा जननांग (जायांग) नहीं, उनको पुंकेसरीय कहते हैं। कुछ पुष्प केवल मादा जननांग (जायांग) ही धारण करते हैं। इनमें पुमंग (Androecium) अनुपस्थित होता है। ऐसे पुष्पों को स्त्रीकेसरीय कहते हैं।
कुछ एकलिंगी पौधे –
(i) मक्का- जिआ मेज (Zea mays),
(ii) पपीता – कैरिका पपाया (Carica papaya),
(iii) नारियल कोकोस न्यूसीफेरा (Cocos nucifera)

15. अण्डप्रजक प्राणियों की संतानों का उत्तरजीवन (सरवाइवल) सजीवप्रजक प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिम युक्त क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- प्राणियों को अण्डप्रजक (Oviparous) तथा सजीव प्रजक (Viviparous) श्रेणियों में विभक्त किया गया है। अण्डप्रजक प्राणियों जैसे कि सरीसृप वर्ग तथा पक्षी आदि के द्वारा निषेचित अण्डों (युग्मनज) का विकास मादा प्राणी के शरीर के बाहर होता है। इन प्राणियों द्वारा पर्यावरण के सुरक्षित स्थान पर निषेचित अण्डे दिये जाते हैं जो कि कैल्सियम युक्त कवच से ढँके होते हैं। अण्डों में भ्रूणीय विकास के फलस्वरूप नये शिशु का निर होता है। शिशु निश्चित निवेशन अवधि के पश्चात् अण्डे के स्फुटन के फलस्वरूप मुक्त हो जाता है। यह बाह्य परिवर्धन पर्यावरणीय प्रतिकूल परिस्थितियों तथा शिकारी प्राणियों से प्रभावित होता है। इन प्राणियों की उत्तरजीविता अधिक जोखिम युक्त होती है। अण्डप्रजक प्राणियों को विकास के लिये कम समय मिलता है, जबकि दूसरी ओर सजीव प्रजक जीवों (जिसमें स्तनधारी एवं मानव सहित) में मादा जीव के शरीर के भीतर युग्मनज विकसित होकर शिशु का विकास करता है और एक निश्चित अवधि एवं विकास के चरणों को पूरा करने के बाद मादा जीव के शरीर से प्रसव द्वारा पैदा किये जाते हैं। भ्रूणीय सही देखभाल तथा संरक्षण के कारण सजीव प्रजक जीवों के उत्तरजीवित रहने के सुअवसर बढ़ जाते हैं तथा आन्तरिक परिवर्धन होने के कारण ये बाह्य वातावरण तथा बाह्य परभक्षी जीवों से सुरक्षित रहते हैं। यही कारण है कि सजीवप्रजक की उत्तरजीविता अण्डप्रजक की अपेक्षा अधिक होती है।

 

 

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