Bihar Board 10th Sanskrit Chapter-1 Subjective Question 2025: संस्कृत Chapter- 1 सब्जेक्टिव वायरल क्वेश्चन यहां से देखें, @officialbseb.com
Bihar Board 10th Sanskrit Chapter-1 Subjective Question 2025:
1. कर्णस्य दानवीरता
1. किसको दान देना चाहिए ? [20234, 20214]
उत्तर’कर्णस्य दानवीरता’ पाठ में दान की विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए शरीर का मोह किये बिना दान अवश्य करना चाहिए।
2. दानवीर कर्ण का चरित्र-चित्रण करें । [20234]
अथवा, कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें । [20204, 20184]
उत्तर-दानवीर कर्ण एक साहसी तथा कृतज्ञ आदमी था। वह सत्यवादी और मित्र का विश्वासपात्र था। दुर्योधन द्वारा किये गये उपकार को वह कभी नहीं भूला। उसका कवच-कुण्डल अभेद्य था फिर भी उसने इन्द्र को दानस्वरूप दे दिया। वह दानवीर था। कुरुक्षेत्र में वीरगति को पाकर वह भारतीय इतिहास में अमर हो गया।
3. कर्ण के कवच और कुण्डल की विशेषताएँ क्या थीं ? [2023A, 2018A]
उत्तर कर्ण का कवच और कुण्डल जन्मजात था। जब तक उसके पस कवच और कुण्डल रहता दुनिया की कोई शक्ति उसे मार नहीं सकती थी। कवच और कुण्डल उसे अपने पिता सूर्य देव से प्राप्त थे, जो अभेद्य थे।
4. इन्द्र (शक्र) ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी और क्यों ? [2022A]
उत्तर- इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी। अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे, क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूँकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः, पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।
5. कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद क्यों नहीं दिया ? [20224]
उत्तर- इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्यंभावी है। कर्ण को यदि दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता। इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चन्द्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया ।
6. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करें [2018A]
अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र के चरित्र की विशेषताओं को लिखें। [M. Q. Set-V: 2016, 2015A, 2011A)
उत्तर- इन्द्र स्वर्ग का राजा है किन्तु वह सदैव सशंकित रहता है कि कहीं कोई उसका पद छीन न ले। वह स्वार्थी तथा छली है। उसने महाभारत में अपने पुत्र अर्जुन को विजय दिलाने के लिए ब्राह्मण का वेश बनाकर छल से कर्ण का कवच-कुण्डल दान में ले लिया ताकि कर्ण अर्जुन से हार जाए।
7. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान के महत्त्व का वर्णन करें। [2016]
अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें। [M. Q. Set-V: 2015]
उत्तर कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगते हैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं। इसपर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाती है, बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहता है, अर्थात् दान कदापि नष्ट नहीं होता है।
8. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता को बताएँ । [2016A]
अथवा, दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ?
उत्तर- दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया। कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कुण्डल उसका प्राण-रक्षक है। लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचंक को खाली लौटने नहीं दिया।
9. कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें [M. Q. Set-III: 2016, 2014A]
उत्तर कर्ण सूर्यपुत्र हैं। जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है। जबतक कर्ण के शरीर में कवच-कुण्डल है तब तक वह अजेय है। उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र हैं। इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता है। इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच और कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच और कुण्डल दे देता है।
10. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार कौन हैं ? कर्ण किनका पुत्र था तथा उन्होंने इच्द्ध को बान में क्या दिया ? [2011A] ‘
उत्तर- कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार ‘भास’ हैं। कर्ण कुन्ती का पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में अपना कवच और कुण्डल दिया।
11. ब्राह्मण के रूप में कर्ण के समक्ष कौन किसलिए पहुँचता है ?
उत्तर ब्राह्मण के रूप में कर्ण के समक्ष इन्द्र उपस्थित हुए।
12. कर्ण कौन था ? उसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर कर्ण कुन्ती का पुत्र था, परन्तु महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष से लड़ाई की। उसके शरीर पर जन्मजात कवच और कुंडल था। जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर से अलग नहीं होता, तब तक कर्ण की मृत्यु असंभव थी। वह महादानी था।
13. कर्ण ने कवच और कुंडल देने के पूर्व इन्द्र से किन-किन चीजों को दानस्वरूप लेने के लिए आग्रह किया ?
उत्तर इन्द्र कर्ण से बड़ी भिक्षा चाहते थे। कर्ण समझ नहीं सका कि इन्द्र भिक्षा के रूप में उनका कवच और कुंडल चाहते हैं। इसलिए कवच और कुंडल देने से पूर्व कर्ण ने इन्द्र से अनुरोध किया कि वे सहस्त्र गाएँ, बहुसहस्र घोड़े-हाथी, अपर्याप्त स्वर्ण मुद्राएँ और पृथ्वी (भूमि), अग्निष्टोमयज्ञ का फल या उसका सिर ग्रहण करें।
14. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ कहाँ से उद्धृत है ? इसके विषय में लिखें।
उत्तर ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है। महाभारत युद्ध में कुन्तीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए, इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुंडल माँगकर पांडवों की सहायता करते हैं।
15. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ में कर्ण ने इन्द्र को जन्मजात कवच और कुंडल दान किया। इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किये बिना दान अवश्य करना चाहिए।
16. कर्णस्य दानवीरता पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर-यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित किया गया है। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवच-कुण्डल को माँग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अङ्गराज्य (मुंगेर तथा भागलपुर) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए माँगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।