Bihar Board 12th Hindi Chapter-11 Subjective Question 2025: हँसते हुए मेरा अकेलापन, प्रश्न उत्तर ,(सीधें परीक्षा 2025 में लड़ेगा) याद कर ले, @Officialbseb.com

Bihar Board 12th Hindi Chapter-11 Subjective Question 2025

Bihar Board 12th Hindi Chapter-11 Subjective Question 2025: हँसते हुए मेरा अकेलापन, प्रश्न उत्तर ,(सीधें परीक्षा 2025 में लड़ेगा) याद कर ले, @Officialbseb.com

Bihar Board 12th Hindi Chapter-11 Subjective Question 2025:

गद्य-11 हँसते हुए मेरा अकेलापन

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1. आदमी यथार्थ को जीता ही नहीं, यथार्थ को रचता भी है। [Sc. & Com. 2019A, 2015A, 2014A, 2013A, 2012A; Arts 20124, 2011A, 2010A)
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति समर्थ लेखक मलयज के 10 मई, 1978 की डायरी की है। मनुष्य अपनी दैनन्दिन जिन्दगी में जो कुछ करता है, जिन संघर्षों के साथ रहता है, वह यथार्थ है। जीवमात्र को जीने के लिए हमेशा संघर्ष करना पड़ता है। वह इन संघर्षो को जीता है। यदि संघर्ष ना रहे तो जीवन का कोई मोल ही न हो। मनुष्य इन यथार्थों के सहारे जीवन जाती है। वह इन यथार्थ का भोग भी करता है और भोग करने के दौरान इनकी सर्जना भी कर देता है। संघर्ष संघर्ष को जन्म देती है। कहा गया है गति ही जीवन है और जड़ता मृत्यु। इस प्रकार आदमी यथार्थ को जीता है। भोगा हुआ यथार्थ दिया हुआ यथार्थ है। हर एक अपने यथार्थ की सर्जना करता है और उसका एक हिस्सा दूसरे को देता है। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। इसलिए यथार्थ की रचना सामाजिक सत्य की सृष्टि के लिए एक नैतिक कर्म हैं।

2. इस संसार से संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति समर्थ लेखक मलयज की 10 मई, 1978 की डायरी को है। मानव का संसार से जुड़ा होना निहायत जरूरी है। मानव संसार के अमानों का उपभोग करता है और उसकी सर्जना भी करता है। मानव अपने संसार का निर्माता स्वयं है। वह ही अपने संसार को जीता है और भोगता है। संसार से संपृक्ति ना होने पर कोई कर्म ही ना करे। कर्म करना जीवमात्र के अस्तित्व के लिए बहुत ही आवश्यक है। उसके होने की शर्त संसार को भोगने की प्रवृत्ति ही है। भोगने की इच्छा कर्म का प्रधान कारक है। इस तरह संसार से संपृक्ति होने पर जीवमात्र रचनात्मक कर्म की ओर उत्सुक होता है। इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है, क्योंकि इसके बिना उसका अस्तित्व ही संशयपूर्ण हैं।

3. ‘धरती का क्षण’ से क्या आशय है?
उत्तर- ‘धरती का क्षण से लेखक का आशय है कि जिस क्षण शब्द और अर्थ मिलकर रचना का रूप ग्रहण करते है। यह क्रिया धरातल पर ही होती है कही अंतरिक्ष में नहीं।

4. रचे हुए पधार्थ और भोगे हुए यथार्थ में क्या संबंध है ?
उत्तर- भोगा हुआ यथार्थ एक दिया हुआ यथार्थ है। मनुष्य अपना यथार्थ खुद रहता है और उस रचे हुए यर्थात का एक हिस्सा दूसरे दे देता है। हर आदमी एक संसार को रचता है। वह उसी संसार में जीता है और भोगता है। रचने और भोगने का रिश्ता एक द्वंद्वात्मक रिश्ता है। इंसान वही भोगता है जो वो रचता है। दोनों एक दूसरे को बनाते तथा मिटाते हैं।

5. लेखक के अनुसार सुरक्षा कहाँ है? वह डायरी को किस रूप में देखना चाहता है?
उत्तर- लेखक के अनुसार सुरक्षा सूरज की रोशनी में है। सुरक्षा मुश्किलों का डट कर सामना करने, लड़ने में पिसने में और खटने में है। लेखक अपनी डायरी अपनी सभी अनुभवों के रुप में देखना चाहता है। वह चाहता है कि डायरी में उसके जीवन के सभी अनुभव व्यक्त हो। इसलिए लेखक कभी-कभी वह कविता ने मूड में डायरी लिखता है।

6. लडायरी के इन अंशों से लेखक के जिस मूड’ का अनुभव आपको होता है, उसका परिचय अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर- डायरी के इन अंशों से पता चलता है कि लेखक का मूड अपने से संबंधित सजाईयो को उजागर करने का है। वह बड़े ही सामान्य मूड मे सभी क्रियाकलापों का वर्णन करता है।

7. अर्थ स्पष्ट करें- एक कलाकार के लिए यह निहायत जरूरी है कि उसमें ‘आग’ हो और वह खुद ‘ठंडा हो।
उत्तर- लेखक का कहना है कि एक कलाकार के लिए बहुत जरूरी है कि उसमे ‘आग’ हो अर्थात वह अपने कर्म के प्रति पूर्णतः संवेदनशील हो, चाहे उसका व्यक्तित्व ठंडा ही हो।

8. चित्रकारी की किताव में लेखक ने कौन सा रंग सिद्धांत पड़ा था ?
उत्तर- चित्रकारी की किताब में लेखक ने यह रंग सिद्धांत पढ़ा था कि शोख और भडकीले रंग संवेदनाओ को बड़ी तेजी से भारते हैं, उन्हें बड़ी तेजी से चरम बिंदु की ओर ले जाते है और उतनी ही तेजी से उन्हें ढाल की ओर खींचते है।

9. 11 जून 78 की डायरी से शब्द और अर्थ के संबंध पर क्या प्रकाश पड़ता है? अपने शब्दों में लिखे
उत्तर-11 जून 78 की डायरी से शब्द और अर्थ के संबंध में पता चलता है कि शब्द और अर्थ की बीच तब धता कम रहती है। जब लेखन किया जाता है तो शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में ढलते चले जाते है। शब्द और अर्थ का संगम ही धरती का क्षण होता है।

10. रचना और दस्तावेज में क्या फर्क है? लेखक दस्तावेज को रचना के लिए कैसे जरूरी बताता है
उत्तर- लेखक रचना और दस्तावेज के फर्क को स्पष्ट करते हुए हुए कहता है कि मैं जो कुछ लिखता हूँ वह सबका सब रचना नहीं होती। मै जो कुछ भोगता हूँ उन सबमे रचना के बीज नहीं होते। भोगे हुए अनुभव के जो अंश लेखक के साथ चलते है, वही रचना है। शेष सिर्फ दस्तावेज है। लेकिन यह दस्तावेज रचना के लिए जरूरी है, क्योकि दस्तावेज रचना का कच्चा माल है। यही रचना को पैदा करने वाली उपजाऊ मिट्टी है।

11. लेखक अपने किस डर की बात करता है? इस डर की खासियत क्या है? अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर- लेखक हर को अपने जीवन का केंद्रिय अनुभव बताता है। उसे बुरी बुरी बिमारियों का डर या घर के किसी सदस्य के देर तक वापस न आने से उत्पन्न आशंकाओ का डर सताता रहता है। इस डर की खासियत यह है कि इसके कारण लेखक घंटो तनाव में गुजार देता है। उसका हृदय बहुत तेज धडकने लगता है और मुख से प्रार्थनाएँ निकलने लगती है। ऐसा उसके मन में आने वाली तरह-तरह की अप्रिय कल्पनाओ के कारण होता है।

12. डापरी क्या है?
उत्तर- डायरी किसी साहित्यकार या व्यक्ति द्वारा लिखित एक ऐसा संग्रह है। जिसमें वह अपने जीवन के अनुभव और अपने जीवन के महत्वपूर्ण दिनों के बारे में बड़ी सच्चाई के साथ लिखता है।

13. हापरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है?
उत्तर- डायरी का लिखा जाना वाकई में मुश्किल है क्योंकि इसमें सभी घटित घटनाओं को बिल्कुल सही- सही रूप में वर्णित करना होता है। डायरी में लिखित सभी बातें सच्ची होनी चाहिए। इसके अलावा डायरी में लिखे शब्द और अर्थ में उदासीनता कम रहती है।

14. किस तारीख की डायरी आपको सबसे प्रभावी लगी और क्यों ?
उत्तर- मुझे 30 अगस्त 1976 की लिखी गई डायरी सबसे प्रभावी लगी। इसमें लेखक एक सात साल की लड़की का वर्णन करते हैं। वो लड़की सेब बेचती थी। लेखक उस लड़की का वर्णन बड़े भावनात्मक तरीके से करते हैं।

15. व्याख्या करें, (क) आदमी पथार्थ को जीता ही नहीं, पथार्थ को रचता भी है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हँसते हुए मेरा अकेलापन डायरी से ली गयी है। इस पंक्ति में लेखक मलयज ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि व्यक्ति पधार्थ में जीता भी है और यथार्थ को रचता भी है। यथार्थ मनुष्य जीवन का एक कद कटु सत्य है। वास्तविकता से परे (अलग) मनुष्य का जीवन एकाकी एवं व्यर्थ होता है। इस पंक्ति में लेखक ने संकेत दिया है कि उनके बच्चे उनकी रचना है और वे यथार्थ हैं। उनकी चिंता उनके स्वयं की है। लेखक पारिवारिक बोझ के बंधन से बंधे हैं। जबकि उनका परिवार बंधनरहित एवं चिंतामुक्त है। यही जीवन का यथार्थ है। अतः व्यक्ति की रचना एवं उसके जीवन का यधार्थ दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

(ख) इस संसार से संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म है। इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति मतयज द्वारा रचित पाठ हँसते हुए मेरा अकेलेपन से लिया गया है लेकिन इस पंक्ति के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य का संसार से जुड़ा एक रचनात्मक कार्य है। इसी जुड़ाव के कारण मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकार रचनाएँ करता है। इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है अर्थात मनुष्य संसार से जुड़वा के कारण रचनात्मक कार्य करता है और उसमें मानवीयता का भाव जागृत होता है।

16. हापरी के इन अंशों में मलयज की गहरी संवेदना घुली हुई है। इसे प्रमाणित करें।
उत्तर- डायरी के इन अंशो में मलपज का गहरी संवेदना घुली हुई है। यह बात पाठ के शुरू में ही मालूम पड़ जाती है। जब लेखक हरे भरे पेड़ पौधों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करते हैं। लेखक प्रकृति के प्रति गहरी संवेदना और लगाव प्रकट करते हैं। उनका यह लगाव तब भी जाहिर होता है, जब वे खेतों की फसलों की तुलना व्यक्ति से करते हैं। लेखक इतना संवेदनशील व्यक्ति हैं कि जब उनकी चिट्ठी नहीं आती तो वह बहुत दुखी हो जाते हैं। जब भी वह किसी से मिलते हैं तो अपनापन की भावना से मिलते हैं। जब लेखक सेब बेचती हुई लड़की को सेव बेचते हुए देखते हैं तो उन्हें पीड़ा का अनुभव होता है। लेखक डापरी में अपने डर को भी व्यक्त करते हैं।

 

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